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दलाल से चलती है इस दफ्तर की 'गाड़ी'

By Edited By: Published: Thu, 21 Aug 2014 11:09 PM (IST)Updated: Thu, 21 Aug 2014 11:09 PM (IST)
दलाल से चलती है इस दफ्तर की 'गाड़ी'

बुलंदशहर : परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा आरटीओ कार्यालयों के पर कतरने के बयान से एक बार फिर इन कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार का मुद्दा गरम हो गया है। तमाम कवायदों के बावजूद आरटीओ और एआरटीओ कार्यालय भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सके हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां पर सक्रिय दलाल हैं। विभागीय मिलीभगत का आलम यह है कि आज भी एआरटीओ दफ्तर में होने वाला 50 से 60 फीसदी काम दलालों के ही माध्यम से हो रहा है।

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बुलंदशहर एआरटीओ कार्यालय पर इस वक्त लगभग दो सौ दलाल सक्रिय हैं। लाइसेंस, परमिट या वाहन संबंधी कोई भी काम लेकर जैसे ही कोई आम आदमी एआरटीओ कार्यालय में प्रवेश करता है। कार्यालय के बाहर डेरा जमाए दलाल उन पर टूट पड़ते हैं। इसके बाद शुरू होता है रेट का खेल। एक अनुमान के मुताबिक हर प्रक्रिया में दलाल निर्धारित शुल्क से दो गुना वसूल करते हैं। दलाल को मुनाफे की आधी रकम विभाग के कर्मचारियों पर खर्च करनी पड़ती है। मसलन एक ड्राइविंग लाइसेंस बनने में सरकारी खर्च लगभग पौने चार सौ रुपये है, मगर दलाल द्वारा काम करने पर आम लोगों से 700 से 800 रुपये खर्च वसूले जाते हैं। बचत के दो सौ रुपये दलाल के होते हैं और बाकी की रकम एआरटीओ के कर्मचारी आपस में बांट लेते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 50 से 60 फीसदी काम दलालों के मार्फत ही होते हैं।

मुश्किल बड़ी है

एआरटीओ कार्यालय पहुंचे शास्त्री नगर के राजेश ने बताया कि उनसे लाइसेंस बनवाने के लिए पहले नियमानुसार कार्रवाई शुरू की। चार पांच दिन तक चक्कर काटने के बावजूद बाबू कोई न कोई कमी निकाल कर उसे वापस कर देते हैं। हार मानकर उसने दलाल से संपर्क साधा और उसके बाद उसका काम उन्हीं कागजों के सहारे आसानी से हो गया।

अवैध हैं दलाल, मगर पेट सवाल का

नियमानुसार एआरटीओ में दलालों की एंट्री पर रोक है और सभी अवैध हैं। मगर, बात रोजगार की करें तो आरटीओ में दलाली के जरिए हजारों परिवारों की रोजी रोटी चलती है। शासन की ओर से कई बार दलाल मुक्त आरटीओ कार्यालय करने की कोशिश की गई, हजारों बेरोजगारों की बात सामने आने पर सभी चुप हो जाते हैं।

कमीशन तय हो तो बन जाए बात

आरटीओ के दलाल सबसे ज्यादा भ्रष्ट और बदनाम होते हैं। मगर, ऐसा नहीं है कि दलाल केवल आरटीओ में ही होते हैं। अन्य विभागों में भी दलाल सक्रिय हैं। जानकारों के मुताबिक बीमा कंपनियों की तरह अगर आरटीओ के दलालों का भी हर काम के लिए कमीशन तय हो जाए तो भ्रष्टाचार बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

इनकी सुनिए

हमारे कार्यालयों में मैन पॉवर की बड़ी कमी है। यही वजह है कि काम में देरी होती है और इसका फायदा दलाल उठाते हैं। दलालों को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है।

-श्रीराम यादव, एआरटीओ


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