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पूरा अमला माफिया का चौकीदार

बिजनौर : हुक्मरानों ने गंगा के जख्म को नासूर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। बर्बाद हुए किसानों ने व

By Edited By: Published: Sat, 30 Apr 2016 10:39 PM (IST)Updated: Sat, 30 Apr 2016 10:39 PM (IST)
पूरा अमला माफिया का चौकीदार

बिजनौर : हुक्मरानों ने गंगा के जख्म को नासूर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। बर्बाद हुए किसानों ने वन विभाग से जमीन लीज पर लेकर कड़ी मेहनत कर फसल तैयार की, लेकिन ऐन वक्त पर माफिया मौके पर पहुंच गए और फसल पर अपना हक जता दिया। पीड़ित किसानों ने सिपाही से लेकर कलक्टर तक गुहार लगाई, लेकिन पूरा अमला माफिया का ही चौकीदार निकला। मौके पर फसल का निरीक्षण करने आए अफसरों ने फसल की कीमत करीब साठ हजार रुपये आंकी, लेकिन मुआवजे की राशि तीन हजार रुपये पकड़ाकर घुड़क दिया। गंगा के किनारे रावली से दयालवाला तक रहे रहे दर्जन भर गांवों के हजारों ग्रामीणों की पीड़ा का अंशमात्र यह है।

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2010 में आई बाढ़ के चश्मदीद रहे शीमला कलां निवासी रघुवीर ¨सह का कहना है कि गंगा में बाढ़ तो प्राकृतिक आपदा है। लेकिन गंगा के जख्म को चीरकर नासूर बनाया सरकारी निजाम ने। जब फसल डूबी तो अधिकारी निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने सभी ग्रामीणों की मौजूदगी में कहा था कि कम से कम साठ हजार कीमत के तो पेड़ ही खड़े हैं, फसल के दाम अलग हैं, लेकिन जब मुआवजा मिला तो चेक पर तीन हजार रुपये की राशि दर्ज थी। गंगा के हाथों बर्बाद होने पर उन्होंने वन विभाग से लीज पर जमीन ली और पूरे परिवार को लेकर कड़ी मशक्कत से फसल तैयार की। एक दिन पता चला कि कुछ लोग फसल काटने आए हैं तो पैरों तले जमीन खिसक गई। मौके पर पहुंचे तो पटवारी भी मौजूद था। उसने बताया कि यह फसल इन लोगों की है। उन्होंने थाने से लेकर कलेक्टर तक के दरबार में गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कलक्टर ने पूरी बात सुनी और नजरे झुकाकर कहा कि व्यवस्था यही है और फसल दबंग ही काटेंगे। जीते जी परिवार के सदस्यों को भुखमरी के कगार पर छोड़कर लौट आया। यह पीड़ा अभी खत्म नहीं हुई है। गंगा हर साल अपनी धार बदल रही है। हम

पूरी साल मेहनत करके जो खेत तैयार करते हैं और वहां फसल बोते हैं, बरसात के कारण गंगा में उफान आता है और हमारी फसलों पर रेत की भारी परत जम जाती है। पहले तो कई महीनों की मशक्कत के बाद हम लोग रेत हटाकर जमीन तैयार करते हैं, लेकिन जैसे ही जमीन फसल के लिए तैयार होती है तो मौके पर फिर दबंग पहुंच जाते हैं पटवारी को लेकर। इसके बाद लेखपाल हमारी समतल की गई जमीन को माफिया के हवाले कर देता है और ठगे रह जाते हैं हम।


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