मोदी के सौ दिन पर अफसरों का एक दिन भारी
ज्ञानपुर (भदोही) : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम के सौ दिन पर अफसरों का एक दिन भारी है। उनके उपलब्धियों में शामिल अतिरिक्त चावल को अधिकारियों ने वितरण न करवाकर वापस करने की संस्तुति कर दी। कालीन नगरी में सूखा पड़ने से खाली पेट करवट बदल रहे गरीबों के जहां हलक सूख रहे है वहीं जिम्मेदार अधिकारी कालाबाजारी की दुहाई देकर घर आए निवाला को वापस कर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।
महंगाई और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए मोदी सरकार ने राज्यों को 50 लाख टन अतिरिक्त चावल की आपूर्ति की थी। प्रधानमंत्री पद पर शपथ लेने के सौ दिन पूरे होने पर केंद्र सरकार की उपलब्धियों में शामिल चावल मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पाई। दरअसल प्रदेश के चालीस जनपदों में एपीएल चावल का आवंटन किया गया था। इसी के तहत कालीन नगरी को प्रत्येक माह 1700 एमटी चावल का आवंटन किया गया था।
खाद्य एवं रसद विभाग ने इसके लिए नौ करोड़ रुपये भारतीय खाद्य निगम को भुगतान भी कर दिया था। इसके बाद भी अफसरों ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए चावल की कालाबाजारी करने की दुहाई देते हुए वापस करने की संस्तुति कर दी। विभागीय सूत्रों का कहना है कि जिला पूर्ति अधिकारी ने चावल निकासी व वितरण के लिए जिलाधिकारी से संस्तुति मांगी थी लेकिन डीएम ने इस संबंध में तीनों उपजिलाधिकारियों से रिपोर्ट मांग ली।
कालाबाजारी होने की आशंका व्यक्त करते हुए उपजिलाधिकारियों ने चावल को वापस करने की संस्तुति कर दी। सूत्रों का कहना है कि जिलाधिकारी ने मार्च 2015 तक मिलने वाले करीब दस हजार एमटी चावल को सरेंडर करने की संस्तुति शासन को भेज दी है। बारिश न होने से किसानों के खेत में धान की फसल पीली पड़ गई है। अभी तक जिन फसल में बालियां दिखने लगती थीं उससे मजबूत पत्तियां भी नहीं निकल पाई हैं। ऐसे में केंद्र सरकार से मिले चावल को वापस करने के बाद जिला प्रशासन के कार्यप्रणाली पर अंगुली उठने लगी है।
जब वह चावल का वितरण ठीक से नहीं करा सकता है तो जिले की कानून व्यवस्था और अन्य दुश्वारियों में कैसे निबट सकेगा। इसका जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं है।
..तो 3.40 लाख कार्डधारकों के साथ हुआ धोखा
-केंद्र से मिले अतिरिक्त चावल सरेंडर होने से तीन लाख 40 हजार एपीएल कार्डधारकों के साथ धोखा हुआ है। वैसे भी जिले में धान की खेती अधिक मात्रा में नहीं होती है। यहां कुछ किसानों को छोड़ करीब-करीब प्रत्येक मध्यमवर्गीय परिवार को चावल बाजार से ही खरीदना पड़ता है। ऐसे में चावल को वापस कर देने से लोगों में आक्रोश व्याप्त है।
संदेह के घेरे में हैं खाद्यान्न वितरण
जिला प्रशासन ने जिस प्रकार से एपीएल चावल को वापस करने के लिए रिपोर्ट दी है यदि उस रिपोर्ट पर गौर किया जाए तो जिले में हो रहे अंत्योदय, बीपीएल खाद्यान्न वितरण भी संदेह के घेरे में हैं। अब सवाल उठता है कि एपीएल चावल बंटवाने में असफल जिला प्रशासन अन्य कार्डो पर मिले राशन को कैसे वितरण करवाता है। इसका जवाब भी विभाग के पास नहीं है।
4200 एमटी गेहूं भी हो चुका है सरेंडर
विभागीय लापरवाही से पटरी से उतरी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का खामियाजा एपीएल कार्डधारकों को भुगतना पड़ रहा है। अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में फेल विभागीय अधिकारी कालाबाजारी की दुहाई देते हुए 4200 एमटी गेहूं भी सरेंडर कर चुके हैं। इससे भी तीन लाख 40 हजार कार्डधारकों को झटका लगा था।
आखिर क्यों की गई थी मांग
जिला प्रशासन को जब चावल का वितरण नहीं करवाना था तो मांग ही क्यों की गई। तत्कालीन जिलाधिकारी ने शासन को पत्र भेजकर एपीएल चावल की मांग की थी। इसी आधार पर चावल का आवंटन किया गया था।
पड़ोसी जनपद में वितरित होता है एपीएल खाद्यान्न
कालीन नगरी के आस-पास जनपद वाराणसी, इलाहाबाद, जौनपुर, मीरजापुर में एपीएल चावल व गेहूं का वितरण किया जाता है। महज भदोही में ही कालाबाजारी की आशंका की बात कर एपीएल कार्डधारकों के राशन को वापस कर दिया जा रहा है।