बजट न मिलने पर अधर में दस हजार शौचालय
ज्ञानपुर (भदोही) : देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही शौचालय निर्माण के लिए गंभीर हों। अन्य सरकारें भी पहल कर रही हों लेकिन यहां पर बजट के अभाव में दस हजार शौचालयों का निर्माण नहीं हो सका है। आलम यह है कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में करोड़ों रुपये का भुगतान लटका हुआ है।
निर्मल भारत योजना के तहत प्रति शौचालय निर्माण के लिए 10 हजार रुपये की लागत निर्धारित है। इस पूरी धनराशि में से चार हजार पांच सौ रुपये मनरेगा के तहत दिया जाना है तो चार हजार छह सौ रुपये अभियान के अंतर्गत खर्च किए जाएंगे। शेष नौ सौ रुपये की धनराशि लाभार्थी को खर्च करनी होगी। इधर, शौचालयों के निर्माण का काम अभी तक गति नहीं पकड़ सका है। इसके पीछे कारण बन रहा है विभागों की ओर से मिलने वाला धन।
अभियान के हिस्से का धन तो चयनित गांवों में भेजा जा चुका है लेकिन मनरेगा का धन अभी तक अधिकांश गांवों में नहीं पहुंच सका है। रिकार्ड पर गौर किया जाए तो वित्तीय वर्ष 2013-14 में अभियान के दस हजार शौचालयों का निर्माण होने थे। अभियान के तहत मिले बजट को तो भेज दिया गया है लेकिन मनरेगा से लाभार्थियों को एक धेला भी नहीं मिल पाया है।
लोहिया गांवों में तो दबाव बनाकर काम करा लिया जा रहा है लेकिन अन्य गांव के लाभार्थी आधा-अधूरा शौचालय बनाकर छोड़ दिया गया है। बताया जाता रहा है कि तीन करोड़ से अधिक का भुगतान नहीं हो सका है। इससे मजदूरों को आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि भारत सरकार से मनरेगा के तहत प्रदेश सरकार को बजट मिल गया है। शीघ्र ही जिले स्तर पर भी बजट आने की संभावना है।
मनरेगा से जुड़ने पर बढ़ी औपचारिकता
महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से शौचालय निर्माण कराना प्रधानों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। इससे जो बड़ी दिक्कत सामने आ रही है वह यह है कि प्रत्येक शौचालय की वित्तीय स्वीकृति होगी तो लाभार्थियों की पहचान प्रमाणित होने के साथ मास्टर रोल बनेगा। शौचालयों का निर्माण जाबकार्ड धारक ही करेंगे। निर्माण में आने वाले मजदूरी खर्च का भुगतान मनरेगा की धनराशि से ही किया जाएगा।