कागज में चौकस धरातल पर बदहाल
बस्ती: लोक कहावत है थूक लगाए क मुसरी (चुहिया) जियाउब। ये कहावत जिला स्टेडियम पर सटीक बैठती है। इस परिसर के रेस ट्रैक से लेकर बैडमिंटन कोर्ट तक हर जगह प्रतिभाओं की उपेक्षा हो रही है। मानदेय वाले कोच बस यूं ही कोचिंग चला रहे हैं। स्पोर्टस अफसर ऐसे कि सात साल से जमे हैं और हर शाम अफसरों के साथ खेल कर नौकरी निपटा रहे हैं। कागज में चौकस और धरातल पर ठनठन इस क्रीड़ांगन का सच मन खट्टा करने वाला है।
क्या आपको याद है कि स्थानीय स्तर का कोई खिलाड़ी जिला स्टेडियम से अपनी काबिलियत को रवां कर स्टेट या नेशनल लेबल के किसी इवेंट में पहुंचा है। नहीं याद पड़ रहा है ना, अरे भई जब पिछले दस वर्ष से स्टेडियम का सूरते हाल एक जैसा है तो किसी प्रतिभा को पंख लगने का सवाल ही नहीं पैदा होता। आलम ये है कि मंडल स्तर के क्रीड़ांगन में क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी की तैनाती होनी चाहिए, अतिरिक्त प्रभार संभालने वाले अफसर हैं भी पर उन्हें कभी किसी खिलाड़ी ने आज तक देखा नहीं है। ले देकर स्पोर्टस अफसर हैं जो हर फैसलों के खुद मुख्तार हैं। शायद यही वजह है कि एनआईएस पटियाला से प्रमाणित तीन कोच, फुटबाल, हाकी और क्रिकेट की कोचिंग संभाले हैं। इन्हें हर माह 12 हजार रुपये मानदेय पर अस्थायी तौर पर तैनाती मिली है। मगर दुर्भाग्य ये कि पिछले तीन माह से बजट के अभाव में मानदेय का भुगतान ही नहीं हुआ। हैंडबाल के कोच नेशनल स्तर के हैं जबकि एथलेटिक्स की कोचिंग खुद स्पोर्टस अफसर ने संभाल रखी है।
बैडमिंटन, बास्केटबाल, वालीबाल, कुश्ती, कबड्डी, खो खो, जिमनास्टिक जैसे खेल के कोच हैं ही नहीं, सो कोचिंग चलने का सवाल ही नहीं पैदा होता। खिलाड़ियों का कहना है कि स्पोर्टस अफसर भी सिर्फ शाम को ही आते हैं वो भी अफसरों के साथ बैडमिंटन खेलने, और खेल के बाद घर चले जाते हैं।
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250 खिलाड़ियों की कोचिंग का दावा
स्टेडियम प्रशासन का दावा है कि जिस खेल के कोच हैं उनमें हर खेल में 50 प्रशिक्षु के हिसाब से 250 खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे हैं। क्रिकेट की कोचिंग ऐसी है जिसमें 50 से ज्यादा बच्चे शामिल हैं।
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हर वक्त रहकर संभाल रहा व्यवस्था
जिला क्रीड़ा अधिकारी अभय सिंह ने कहा कि भरसक कोशिश रहती है जदा से ज्यादा समय स्टेडियम में रहकर सीमित संसाधनों में बेहतर व्यवस्था बनाने की। उन्होंने कहा कि ये कहना गलत है कि मैं स्टेडियम में सिर्फ अफसरों के साथ बैडमिंटन खेलने के लिए ही आता हूं। उन्होंने कहा कि कोच की तैनाती शासन स्तर से होती है। बैडमिंटन कोच के लिए जो आवेदक थी उसकी उम्र कम थी सो उसकी नियुक्ति खारिज हो गयी। जबकि कुश्ती के लिए हाल बना है मगर कोई पात्र आवेदक नहीं मिला। रही बात रीजनल स्पोर्टस अफसर के न आने की तो कोई टिप्पणी नहीं करुंगा।
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