डाक्टर बैठक में,स्वास्थ्य कर्मी फरमा रहे आराम
बस्ती: 2.58 लाख आबादी को स्वस्थ रखने का भार जिसके कंधों पर है वह खुद ही बीमार है। बात हो रही है सामु
बस्ती: 2.58 लाख आबादी को स्वस्थ रखने का भार जिसके कंधों पर है वह खुद ही बीमार है। बात हो रही है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की। तीस बेड वाले इस अस्पताल में महज एक चिकित्सक हैं। वह भी सप्ताह में तीन दिन नहीं रहते हैं। फार्मासिस्ट और वार्ड ब्वाय के भरोसे यह अस्पताल है।
यह कब खुलेगा और कब बंद हो जाएगा,इस बारे में भी अनिश्चतता का माहौल है। दो दिन से तो यहां ताला लटक रहा है।
जिले का यह पिछड़ा क्षेत्र है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चेतावनी के बाद भी डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं आया है। जनप्रतिनिधियों के सवाल पर डाक्टर उल्टे ही घेर लेते हैं। अकेले होने की बात कह बड़ी सफाई से सप्ताह भर की वर्किंग बताते हैं। इनके अनुसार सप्ताह में तीन दिन जिला मुख्यालय पर बैठकों में चला जाता है। बाकी के चार वह अस्पताल में रहते हैं। दिखाने के लिए आवास है लेकिन हकीकत यह है वह रात्रि निवास फैजाबाद में ही करते हैं।
यहां नहीं भर्ती होते हैं मरीज
अस्पताल में मरीज भर्ती ही नहीं किए जाते हैं। ओपीडी में डाक्टर की जगह फार्मासिस्ट मरीजों की जांच और दवाएं लिखते हैं। दवाओं के नाम पर यहां महज बुखार, दर्द और उल्टी की दवाएं हैं। मरीजों को अक्सर बाहर की दवाएं ही लिखी जाती हैं। बेड टूटे फूटे तो बिस्तर गंदे और चद्दर फटे पुराने हैं। वार्ड में गंदगी और दुर्गंध से सांस लेना मुश्किल है। सबकुछ रहते हुए सीएमओ की अरूचि के चलते डाक्टर भी मनमानी कर रहे हैं। गंभीर रूप से आने वाले मरीजों को देखते ही फैजाबाद की राह दिखा दी जाती है।
एएनएम कराती है प्रसव
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रभारी चिकित्साधिकारी के अलावा चार अन्य फिजीशियन,बाल रोग,महिला चिकित्सक और निश्चेतक की तैनाती होनी चाहिए लेकिन एक ही की तैनाती है। वह प्रशासनिक के अलावा ओपीडी का भी कार्य देखते हैं महिला चिकित्सक न होने के चलते एएनएम ही प्रसव कराती है। गंभीर रूप से आने वाली प्रसव पीड़िता को बस्ती अथवा फैजाबाद जिला अस्पताल भेज दिया जाता है।
जांच के लिए दूसरे का सहारा
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र परशुरामपुर में मरीजों की जांच भी नहीं हो पाती है। प्रभारी चिकित्साधिकारी के आने के दिन ही यहां सब लोग मिलते हैं। जागरण टीम की पड़ताल में गुरुवार और शुक्रवार को दोपहर 12 बजे आई सीटीसी लैब,आई सीटीसी काउन्सलर रूम,एक्सरे रूम में ताला लटकता मिला। जबकि ओपीडी का समय सुबह 8 से दोपहर बाद दो बजे है। यहां मौजूद एक कर्मचारी ने बताया साहब की गैर मौजूदगी में यही हाल रहता है। एक्सरे और अन्य जांच के लिए मरीजों को बाहर का सहारा लेना पड़ता है।
यह मिली कमियां
-पेयजल के लिए लगा इंडिया मार्क हैंडपंप खराब
-प्रसव व इंसेफेलाइटिस कक्ष में बिजली नहीं
-स्वीपर और चौकीदार की तैनाती नहीं
-जांच को एक्सरे मशीन नहीं है
-कुत्ता और सांप काटने की सुई नहीं है
-वार्ड में गंदगी,बेड टूटे व बिस्तर फटे मिले
अस्पताल में संसाधनों की कमी है। एक डाक्टर हैं। इसके अलावा विक्रमजोत और सिकंदरपुर पीएचसी की भी कार्य व्यवस्था देखनी पड़ती है। सप्ताह में तीन दिन जिला मुख्यालय पर बैठक एवं प्रशासनिक कार्य में ही चला जाता है। बाकी दिनों में वह ओपीडी में बैठकर मरीज देखते हैं।
डा.भाष्कर यादव,प्रभारी चिकित्साधिकारी