बस्ती डिपो की पहचान बनी खटारा बसें
बस्ती : लू के थपेड़ों से लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है।
बस्ती : लू के थपेड़ों से लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है। इससे बचने को दोपहिया छोड़ बस पकड़ी,लेकिन उसमें आराम नहीं मिला। यह कहना है लखनऊ से लौटे कलवारी के रामधीन का। यह कोई इकलौते नहीं है। यही पीड़ा परिवहन निगम की जनरल बसों में चलने वाले हर यात्रियों की है। बस्ती डिपो में सौ बसें हैं इसमें 60 से अधिक बसों की हालत ऐसी है जो सड़क पर दौड़ाने लायक नहीं हैं,लेकिन उनको जैसे तैसे चलाया जा रहा है। हिलती बाडी,फटी सीट और बिना शीशे की बसों में यात्रा लोगों को बीमार बना रही है।
कमोवेश यही हाल अन्य डिपो की बसों की भी है। जर्जर हो चुकी इन बसों में यात्रा करने को यात्री मजबूर हैं। प्रशासन ने सड़क पर उन्हीं बसों को चलाने की इजाजत दी थी जिनमें साफ-सफाई, सुरक्षा और आरामदायक सफर की सुविधा उपलब्ध हो। इसके बाद भी सड़क पर बिना साफ-सफाई व खिड़की पर बिना कांच की बसें दौड़ाई जा रही हैं। इनको न पुलिस वाले रोकते और न ही आरटीओ विभाग ही छेड़ता है। सरकारी के नाम पर मानकों की खिल्ली उड़ा यात्रियों का जीवन संकट में डाल यह बसें दौड़ाई जा रही हैं।
जागरण ने परिवहन निगम की बस सेवा की पड़ताल की। बस्ती बस डिपो परिसर में खड़ी कई ऐसी बसें मिलीं जो मानक के विपरीत थीं। बस की खिड़की से कांच गायब थी। सीटें टूटी हुई थीं। बस के अंदर गंदगी का अंबार था। गोरखपुर बस डिपो की यूपी 53 डीटी 1107 नंबर की अनुबंधित बस ऐसी मिली कि उसकी पिछली सीट के पीछे लगा शीशा टूटा हुआ था। इसी तरह बस्ती डिपो की गाड़ी संख्या यूपी 53 एटी 0514 की बस में खिड़की से तीन शीशे गायब मिले। बस पूरी तरह से जर्जर थी। बस के अंदर छत से सटा सामान रखने वाला रैक गायब था। यात्री बस में यात्रा करने के लिए बैठ गए लेकिन अपने साथ लेकर सामान लेकर परेशान थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था बस में बैठें या अपने सामान की रक्षा करें। गर्मी के मौसम में यात्री इन्हीं बसों में यात्रा करने को मजबूर हो रहे हैं। यात्री किसी भी स्थान पर यात्रा करने के लिए रोडवेज को पूरा किराया देते हैं। इसके बाद भी रोडवेज यात्रियों को सुविधाएं नहीं उपलब्ध करा पा रहा है।
- हांफती रहती हैं बसें
बस्ती बस डिपो से परिवहन निगम की 92 बसें चलती हैं। वहीं बस्ती डिपो से 400 बसें आती जाती हैं। जिसमें बस्ती, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, निचलौल, देवरिया, पडरौना, मऊ सहित अनेक डिपो की बसें हांफती रहती हैं। ये बसें मानक से अधिक चल चुकी हैं। ये दो घंटे के सफर को तीन घंटे में भी बमुश्किल पूरा कर पाती हैं। कभी-कभी इनकी स्थिति ऐसी होती है कि ये रास्ते में ही खड़ी हो जाती हैं।
- ढूंढे नहीं मिलेगा हेल्पलाइन नंबर
बस में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए महिला हेल्प लाइन, पुलिस हेल्प लाइन, आपात एम्बुलेंस नंबर, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी का नंबर अंकित करना अनिवार्य है। अधिकांश में इसे मिटा दिया गया है अथवा वह सूचना प्लेट ही गायब कर दी गई है। बसों में अग्निशमन यंत्र, मेडिकल किट व यात्रा विवरण भी नहीं मिला।
-इनकी जुबानी परिवहन निगम की कहानी
रोडवेज बस डिपो में यात्रा करने वाले यात्री इन बसों में यात्रा करने को मजबूर है। कैलाश चंद्र मिश्रा ने कहा कि रोडवेज केवल किराया लेता है। सुविधा कोई नहीं देता। राम मिलन कहते हैं कि जिन्दगी में पहली बार ऐसी बस देखी है जिसमें लगेज रैक नहीं लगा है। राम भरोसे कहते हैं इन बसों की चाल ऐसी है कि बस्ती से गोरखपुर पहुंचने में ढाई घंटे लग जाते हैं। फोरलेन पर भी बसों की रफ्तार 40 से अधिक नहीं होती। पार्वती कहती हैं कि बस में शीशे नहीं लगे हैं दोपहर में यात्रा करना है। भगवान मालिक है। अनीता देवी कहती हैं कि एक घंटे से बस में बैठी हैं डुमरियागंज जाना है। कब बस भरेगी कब चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता।
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हर रोज कार्यशाला में जांच के बाद ही बसें सड़क पर निकाली जाती हैं। हो सकता है किसी बस में गड़बड़ी हो,यह चालक परिचालक की कमी है। इसकी रिपोर्ट करने पर तुरंत बसें ठीक कराई जाती हैं।
ओम कुमार मिश्र, एआरएम