शहरी क्षेत्र में मिटने के कगार पहुंचे ताल पोखरे
बस्ती : शहर के जमीन की बढ़ती कीमत ने ताल-पोखरों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। सार्वजनिक संपत्
बस्ती : शहर के जमीन की बढ़ती कीमत ने ताल-पोखरों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। सार्वजनिक संपत्ति के यह ताल पोखरे भू-माफियाओं की मोटी कमाई का साधन बन गए हैं। ऐसे में शहर व इससे सटे डेढ़ दर्जन ताल पोखरों में कईयों को पाट दिया गया है। इसके चलते शहर के ताल पोखरों का अस्तित्व मिटने के कगार पर है। भू-माफियाओं की इस कारगुजारी से कई पोखरों को गड्ढ़े तक में समेट दिया है। अब इन स्थितियों के चलते भू-गर्भ जल स्तर नीचे की ओर जा रहा है। हालात नहीं बदले तो पानी के लिए तरसने को विवश होना पड़ेगा।
भू-जल के घटते स्तर को लेकर तंत्र की सांसे टंग गई हैं। करोड़ों रुपया तालाब व पोखरों को बचाने पर सरकार ने बहा दिया, मगर इनके अस्तित्व पर संकट कम होने की बजाय बढ़ गया है। शहरी क्षेत्र के तमाम ताल तो ऐसे हैं जो कभी खेतों के लिए ¨सचाई का साधन थे, और जानवर यहां पानी पीते थे। इसके चलते भू-गर्भ जल भी रीचार्ज होता था, मगर अब वहां गगनचुंबी इमारतें बन गई हैं। यही नहीं जो ताल पोखरे बचे भी थे उनको मिटाने पर भू-माफिया आमादा हैं। ताल पोखरों की जमीन पर अब क्रंकीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं।
यह हैं शहर व इससे सटे तालाब पोखरे
स्टेशन रोड का ताल, रानी पोखरा, बेलवाडाड़ी व ओरीजोत पोखरा, सिविल लाइन्स महरीखांवा पोखरा, पांडेय पोखरा, गड़गोडिया पोखरा, बभनगांवा पोखरा, कटेश्वर पार्क स्थित भुजैनी पोखरा, मुरलीजोत पोखरा, आवास विकास कालोनी स्थित पोखरा, बैरिहवां पोखरा, कटरा मूडघाट पोखरा, निर्मली कुंड, नेबुलवा ताल। इन ताल पोखरों का अस्तित्व करीब-करीब मिट चुका है।
इनकी सुनिए
शहर के विवेकानंद कालोनी निवासी उमेश श्रीवास्तव कहते हैं कि पानी का संकट कैसे शुरू हुआ। इस पर अब विचार करने की जरूरत आ गई है। ताल पोखरे पाट कर रुपया बटोरने वालों को मालूम नहीं कि पानी है तभी ¨जदगानी है। ऐसे लोग जो ताल पोखरों को पाट रहे हैं उन पर सख्त कानून बनाकर कार्यवाही होनी चाहिए।
चइयाबारी निवासी आयुष ¨सह कहते हैं कि मुहल्ले में एक बड़ा ताल था जिस पर अब मैरेज हाल खड़ा है। इस ताल से कभी आसपास के खेतों की ¨सचाई होती थी। पशु पानी पीते थे, मगर अब वह स्थल सूख चुका है इसे कैसे खरीदा व बेचा गया यह तो नहीं पता, मगर पानी का मुख्य स्त्रोत वर्षों पूर्व समाप्त हो गया। ऐसे ही पोखरे शहर में थे जो अब कल की बात हो चुके हैं। शहर के भू-गर्भ जल पर इसी के चलते संकट खड़ा हुआ है।
गांवगोडिया निवासी सत्येंद्र चौधरी कहते हैं कि शहर के मध्य में भुजैनी पोखरा था, जहां लबालब पानी लोगों को आकर्षित करता था, मगर अब वह पट चुका है। लोगों ने मकान बनवा लिए। यही हाल मेरे मुहल्ले का भी है। यहां का भी पोखरा न जाने कहां खो गया। अब जब स्थितियां असामान्य हो रही हैं तो लोग एक दूसरे को थोप रहे हैं।
अधिवक्ता ममता श्रीवास्तव कहती हैं कि जल बिन सब सून हो जाएगा, मगर इसे समझने समझाने के लिए किसके पास समय है। अब समय आ गया है जब लोग जागरूक हों वरना पानी के लिए तरसेंगे तो वह इमारत व रुपया सब भूल जाएगा।
गांधी नगर निवासी देवेंदर ¨सह रंगी कहते हैं कि पानी है तभी ¨जदगी है। इसे अब लोग समझने लगे हैं। ताल पोखरे थे तो शहर में पानी के लिए कभी कोई दिक्कत नहीं आई। एक दर्जन से ज्यादा ताल व पोखरे यहां थे, मगर अब वहां भवन व होटल आदि बन गए हैं। ऐसे में यदि समय रहते नहीं सोचे तो पछताएंगे।
रोडवेज निवासी विनय मिश्र कहते हैं कि बचपन में यहां तो हर मुहल्ले में छोटे-छोटे पोखरे दिखाई पड़ते थे, मगर अब सब बदल गया है। पोखरे तो मिट गए, और उनका स्थान ले लिया है कंक्रीट के जंगलों ने। अब भी वक्त है पानी बचाएं वरना हाथ खाली हो जाएगा। सूख जाएगी धरती तो अन्न भी मयस्सर नहीं होगा।
हटाए जाएंगे ताल पोखरों से अतिक्रमण
अपर जिलाधिकारी राकेश कुमार ¨सह ने कहा कि ताल पोखरों के पुनरोद्धार के लिए उच्चतम न्यायालय की गाइड लाइन के अनुसार कार्य शुरू हो गया है। इस पर प्रशासन गंभीर है। चूंकि ताल पोखरों के चलते भू-गर्भ जल स्तर रीचार्ज होता है और पानी को लेकर सभी सजग हो गए हैं। आम जन को भी इसके प्रति जागरूक किया जाएगा।