दीये को तेल, बाती को रोशनी की आस
बस्ती : जिस बस्ती चीनीे मिल में कभी दीप पर्व दीपावली के त्योहार पर समूचा इलाका कई दिन पहले से ही रोश
बस्ती : जिस बस्ती चीनीे मिल में कभी दीप पर्व दीपावली के त्योहार पर समूचा इलाका कई दिन पहले से ही रोशनी से नहाया रहता था। पर्व के दिन पटाखों की शोर थमने का नाम नहीं लेता था। इस वर्ष वहां सन्नाटा पसरा है। कारण यह कि मिल बंद होने से परिसर सहित आस-पास रह रहे करीब तीन सौ कर्मचारियों के परिवार इस कदर मुफलिसी के दिन काट रहे हैं कि न तो घर की सफाई करा पाए, न ही त्योहार के प्रति उल्लास दिखा।
यूं तो बस्ती चीनी मिल को चालू कराने की मांग को लेकर बेरोजगार हुए कर्मचारियों को धरना देते 397 दिन बीत गए, मगर अभी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। हर सुबह इस आस के साथ शुरू करते हैं कि हो सकता है कि आज मिल चलने से जुड़ी कोई खबर आ जाए और उनके सपनों को नई उड़ान मिलें। अफसोस अब तक ऐसा नही हो सका । फिर भी कर्मचारी धरने पर डटे हुए है। गुरुवार को चीनी मिल परिसर व कालोनी में पसरा अंधेरा , इसमें रहे रहे कर्मचारियों के घरों में खामोशी उनकी मजबूरियों को बयां कर रही थी।
आखिर हमारा कसूर क्या है
बस्ती चीनी मिल में केन कैरियर आपरेटर रहे रामनाथ गौड़ ने कहा कि दीपावली सन्नाटे में बीतेगी ही, परिवार की अन्य जिम्मेदारियों को पूरा करने में असमर्थ हो गया हूं। मिल बंद होने से मुफलिसी का दौर शुरू हो गया। पंपमैन मुकुल बिहारी ने कहा कि संघर्ष जारी है और सफलता हासिल करने के लिए हर चुनौती को स्वीकार किया जाएगा। लेकिन जनप्रतिनिधियों के अलावा अन्य जिम्मेदार भी कोई ठोस पहल नही कर रहे हैं। ऐसे में दीपावली किस खुशी में मनाएं। सहायक पैन मैन धनेश्वर दयाल श्रीवास्तव कहते हैं कि त्योहार की बात छोड़िए, बच्चों की पढ़ाई व अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने में भी संकट हो गया है। मिल बंद होने उम्मीद बिखर सी गई है। सीएफजी आपरेटर जगजीत सिंह व सुखराम ने कहा कि दीपावली पर कर्मियों के आवास पर झालरों की रोशनी नहीं बिखरेगी। आखिर हमारा कसूर क्या है? सीताराम कहते हैं कि मिल प्रबंधन की मनमानी और सरकार की उदासीनता के चलते आज कर्मी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है।