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कृतिकर की शहादत पर केवटहिया गमगीन

विंदेश्वरी लाल श्रीवास्तव, बस्ती : एक तरफ जहां वीर कृतिकर ने अपनी कुर्बानी देकर शहीदों में अपना न

By Edited By: Published: Mon, 29 Sep 2014 10:21 PM (IST)Updated: Mon, 29 Sep 2014 10:21 PM (IST)
कृतिकर की शहादत पर केवटहिया गमगीन

विंदेश्वरी लाल श्रीवास्तव, बस्ती : एक तरफ जहां वीर कृतिकर ने अपनी कुर्बानी देकर शहीदों में अपना नाम दर्ज कराया वहीं परिवार में मातमी माहौल बना हुआ है। गांव भी अब उसके बचपन की यादों को लेकर आंसू बहा रहा है। रानी का पोखरा जो कल तक हिलोरें ले रहा था अब शांत नजर आ रहा है। गांव जो अब तक आंसू बहा रहा था वह भी अब इस वीर सपूत की शहादत पर नाज करता दिखाई दे रहा है।

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श्रीनगर के अलीकदल के डाउन टाउन के भीड़ भरे इलाके में शुक्रवार की शाम सीआरपीएफ जवान कृतिकर को आतंकियों की गोली लगी और वह शहीद हो गया तो उसे याद कर जहां हर मजहब व उम्र के लोग काल के चक्र से अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं वहीं अब उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। पत्‍‌नी मालती, बेटा विकास, विशाल व बेटी गीता को अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि पापा इस दुनिया में नहीं है। उन्हें अब भी विश्वास है कि पापा आएंगे और फिर इस दुनिया की खुशियां वापस आ जाएंगीं।

भर्ती से पहले कृति को घुड़दौड़, चीता दौड़ व दूसरी तरह की विधाओं में निपुण बनाने में योगदान देने वाले गांव के शौकत अली की आंखों में आंसू तो थे ही पर चेहरे पर शिकन नहीं , उन्होंने बड़े ही फख्र से बताया कि दुश्मनों ने पीछे से वार कर बड़ा ही कायराना काम किया है। बचपन से गोद में खिलाने वाले गांव के बुजुर्ग विश्वनाथ सिंह बताते हैं कि आज भले ही क्षेत्र के लोगों को उसे खोने का गम है लेकिन इस बहादुर ने तो स्वतंत्रता संग्राम में क्षेत्र के शहीद शिवगुलाम सिंह की याद ताजा कर दी। अब तो यहां भी उसकी शहादत पर हर बरस मेले लगेंगे। साथ में शिक्षा ग्रहण किये राजकुमार व धीरसेन की आंखें तो भीग गई थीं लेकिन उन्हें भी अपने दोस्त की कुर्बानी पर अब गर्व महसूस हो रहा है। उत्साहित होकर बताते हैं कि रक्षा मंत्रालय को उसके परिवार के प्रति सहयोगात्मक रवैया जहां अपनाना चाहिये वहीं प्रशासन को शहीद के गांव को सैनिक ग्राम घोषित कर उसकी याद में स्मारक बनाकर श्रद्धांजलि देनी चाहिए।

चाचा रामधनी निषाद शहीद भतीजे को भुला नहीं पा रहे हैं। नम आंखों से बताते हैं कि सोचा था अब देश की सेवा में भले नहीं हूं, लेकिन भतीजा तो है।

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रानी का पोखरा भी है वफादारी व प्रेम का गवाह

गाव के बुजुर्गो ने बताया कि यहां के लोगों का अंतिम संस्कार इसी पोखरे के किनारे ही होता है, क्योंकि यह प्रेम व वफादारी का अनूठा उदाहरण पेश करता है। यहां 18 वीं शताब्दी से पहले रानी ब्रजमती ने जब जिद किया कि रात भीतर ही एक जलाशय का निर्माण होना चाहिये तो मजदूरों ने बड़ी मेहनत कर रातोरात एक बहुत बड़े जलाशय का निर्माण कर दिया। जब भोर होने के करीब आ गया तो रानी को अपनी प्रिय दासी पृथनी की याद आ गई। तत्काल एक और तालाब का निर्माण करने का आदेश मिल गया तो एक छोटी पोखरी का निर्माण भी भोर तक हो गया। गांव के लोगों को इस बात को लेकर उत्साह है कि अब यह पोखरा भी इतिहास में अमर हो गया। यहां कभी पानी सूखता नहीं ,जिसमें एक अदृश्य हो चुकी रेणुआ नदी का जलश्रोत भूमिगत प्रवाहित होता रहता है।


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