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एक सपना जो टूट गया

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 10:05 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 10:05 PM (IST)
एक सपना जो टूट गया

देवेन्द्र ओझा, बस्ती : तीन दशक बीत गए। कई सियासी दलों के हाथ सत्ता आई और गई, लेकिन जिले के औद्योगिक विकास के लिए बने प्लास्टिक कापलेक्स की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 87 एकड़ पैतृक भूमि कौड़ियों के भाव देने वाले किसानों की अगली पीढ़ी भूमिहीन हो गई। यही नहीं, जिन उद्यमियों ने अपनी गाढ़ी कमाई लगाई थी, वे या तो कंगाली की जिंदगी बसर कर रहे हैं, या महानगरों को पलायन कर गए।

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शहर से करीब पांच किमी दूर गोरखपुर मार्ग पर स्थापित प्लास्टिक कांपलेक्स (औद्योगिक आस्थान) परिसर के खंडहर अब मुंह चिढ़ा रहे हैं। बात वर्ष 1976 की है। तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री केशवदेव मालवीय ने महत्वाकांक्षी परियोजना की परिकल्पना की। योजना को अमली जामा पहनाने के लिए शहर के बाहरी हिस्से में किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई। मालवीय ने प्लास्टिक कांप्लेक्स की बुनियाद खुद रखी। केंद्र सरकार ने उद्यम चयन की जिम्मेदारी कानपुर की एक संस्था को दी। उसने आननफानन 110 इकाइयों के स्थापना को हरी झंडी दे दी। भवन निर्माण की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम को सौंपी गई। वित्तीय सहायता का अनुबंध भारतीय स्टेट बैंक व पंजाब नेशनल बैंक ने केंद्र सरकार से किया।

वित्तीय संस्थाओं ने किया छल

सरकार ने वित्तीय संस्थाओं व उद्यमियों के बीच जो अनुबंध कराया था, उससे वे मुकर गई। जब उद्योगों का जाल बिछने लगा और पूंजी की जरूरत पड़ी तो बैंकों ने उन्हें धन नहीं उपलब्ध कराया। फिर भी उद्यमी जैसेतैसे इकाइयों को चलाने लगे। अपनी खुद की सारी पूंजी झोंक दी। आठ वर्ष तक गाड़ी खिंची, फिर उद्योगों पर ताला लगने लगा। 86 तक सभी उद्यमियों की हालत खस्ता हो गई। 25 को छोड़ सारी इकाइयां बंद हो गई। जो बचीं उसे सरकार ने रुग्ण घोषित कर दिया। प्रशासन ने अनुदान की संस्तुति की तो सरकार चुप्पी साध गई। 92 आते-आते रुग्ण इकाइयों पर भी ताला लटक गया। पूंजी फंसते देख वित्त निगम ने नीलाम करना शुरू कर दिया। वर्तमान में यहां की ज्यादातर इकाइयों को उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम ने नीलाम कर दिया, जो अवशेष हैं, वह भी बंद हैं।

सरकार व वित्तीय संस्थाओं ने तोड़ी कमर

चैम्बर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह, उद्यमी जेपी द्विवेदी, राजेंद्र चौधरी, सुधीर वर्मा कहते हैं कि सरकार व वित्तीय संस्थाओं ने वादा खिलाफी कर उनकी कमर तोड़ दी । मालवीय के बाद जनप्रतिनिधियों ने कभी प्लास्टिक कांपलेक्स के पुनरुद्धार की दिशा में कोई पहल नहीं की।

ये हैं रुग्ण इकाइयां

-शुक्ला सिरेमिक्स, राजेश बाइसकिल, गोयनका प्लास्टिक पाली पैक, एसके इंडस्ट्रीज, बेरीवाल पालीपैक, प्रसाद प्लास्टिक, भू-आटो मोबाइल सहित कुल सोलह इकाइयां रुग्ण घोषित की गई थीं।

कच्चा माल व बाजार की अनुपलब्धता बनी रोड़ा

उद्योग महाप्रबंधक रंजन चतुर्वेदी ने बताया, दरअसल कच्चा माल व बाजार की अनुपलब्धता प्लास्टिक कांपलेक्स को विकसित करने में रोड़ा बन गया। अब नये सिरे से विकसित करने का प्रयास चल रहा है। उद्यमियों का आकर्षण भी बढ़ा है। प्लास्टिक उद्योग न सही अन्य उद्योग चलने शुरू हो गए है।

उद्योगों का जाल बिछाने की कोशिश

सांसद हरीश द्विवेदी ने कहा कि केंद्र सरकार ने उद्योगों का जाल बिछाकर बेरोजगारी दूर करने के लिए कई योजनाएं बनाई है। उन्हें अमली जामा पहनाने की तैयारियां चल रही हैं। जल्द क्रियान्वयन होने लगेगा। प्लास्टिक कांप्लेक्स का विकास नए सिरे से हो रहा है।


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