उर्दू का विद्वान चिकित्सक बच्चों को बना रहा संस्कृत का पंडित...पढिए खास रिपोर्ट Bareilly News
पेशे से चिकित्सक हैं मगर बच्चों के मन को समझने की विधा भी उन्हें भी खूब आती है। इतनी...कि उनके मन को पढ़कर किताबों पर उतार देते हैं। जरिया संस्कृत को बनाया है।
कमलेश शर्मा ’ बदायूं : इसहाक तबीब। पहली खूबी-हिंदी के साथ ही उर्दू, फारसी भाषा पर तो तगड़ी पकड़ है ही, संस्कृत भी उनके उतने ही करीब है। दूसरी खूबी-पेशे से चिकित्सक हैं मगर, बच्चों के मन को समझने की विधा भी उन्हें भी खूब आती है। इतनी...कि उनके मन को पढ़कर किताबों पर उतार देते हैं। जरिया संस्कृत को बनाया है। इस भाषा में वे अब तक एक दर्जन पुस्तकें लिख चुके हैं। क्यों...क्योंकि मानते हैं कि बच्चों में संस्कारों के साथ संस्कृत का समावेश होना भी जरूरी है। संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने पर कोई क्या कहेगा, इसकी फिक्र किए बिना वह बच्चों को संस्कृत में पारंगत जा रहे हें।
डॉ. इसहाक तबीब बाल साहित्य की 141 पुस्तकें लिख चुके हैं। इनमें एक दर्जन पुस्तकें संस्कृत के ऐसे सरल प्रारूप में हैं कि बच्चे उन्हें खेल-खेल में पढ़ते हैं। सहजता इस कदर कि पुस्तक कि पेज पलटते ही खेल-खेल में कुछ नया सीखने का एहसास हो जाता है। शहर के गनी चौक में रहने वाले डॉ.तबीब सुबह से लेकर रात तक मरीजों के उपचार में व्यस्त रहते हैं। इन सबके बीच नई पीढ़ी के लिए कुछ कर गुजरने की ललक में इन चौबीस घंटों में से कुछ वक्त चुरा लेते हैं...बाल साहित्य लिखने के लिए।
इसलिए संस्कृत का रुख : वह कहते हैं कि अधिकतर प्राचीन ग्रंथ संस्कृत और उर्दू में हैं, जिनमें समाज की हर समस्या का निदान है। पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव में संस्कृत समाज से दूर होती जा रही। यह भाषा जीवित रहे, इसलिए बच्चों में इसका प्रवाह कर रहे हैं।
किस पुस्तक में क्या : उक्ति रंजन पुस्तक में जहां वह संस्कृत की प्रसिद्ध युक्तियों का पद्यानुवाद करते हैं। वहीं थै-थै मुक्त पुस्तक में उन्होंने संस्कृत के 138 शब्दों का अर्थ चौपाई के माध्यम से बताया है। संख्या ज्ञानम में वह संस्कृत में गिनती, दिवस महीने, स्तबक पुस्तक में फूलों के नाम, शाकम में सब्जियों के संस्कृत में नाम, वन्य जीव, फल परिचयन, पालतू पशु, मेवा, दाल के नामों को सहज तरीके बताते हैं।
साहित्य में झलकता राष्ट्रप्रेम : डॉ.तबीब राष्ट्र के लिए समर्पण का भाव रखते हैं। उनकी 141 पुस्तकों में 114 पुस्तके राष्ट्र के नाम समर्पित हैं। इनकी पुस्तकों की शुरूआत किसी आराध्य से नहीं बल्कि राष्ट्रप्रेम के संदेश से होती है। कहते हैं कि देश का मान और स्वाभिमान हम सभी से जुड़ा हुआ है, इसलिए राष्ट्र का गुणगान ही सवरेपरि होना चाहिए।