परिस्थितियों से जूझकर पूरा किया बेटी का संकल्प
जागरण संवाददाता, बरेली : बेटी का नेत्रदान का संकल्प पूरा करने के लिए एक मां हर परिस्थति से लड़ने का त
जागरण संवाददाता, बरेली : बेटी का नेत्रदान का संकल्प पूरा करने के लिए एक मां हर परिस्थति से लड़ने का तैयार है। ऐसे हालात सामने आए कि एकमां को अपने कलेजे पर पत्थर रखकर बेटी का संकल्प पूरा करने के लिए व्यवस्था से जूझना पड़ा। रंग प्रशिक्षु ग्रुप ऑफ थिएटर की ओर से बरेली कॉलेज सभागार प्रस्तुत नाटक 'ख्वाहिशें दीवाली की.' में इस व्यथा को बखूबी पेश किया गया।
डॉ. दिवाकर अपनी बीमार पत्नी की देखभाल में लगे हैं और वहीं दूसरी और एक मां फरियाद लेकर डॉ. दिवाकर की चौखट पर आती है। दिवाली के त्योहार की चकाचौंध में उस बेबस मां की किसी ने नहीं सुनी। डॉ. दिवाकर की लाख कोशिशों के बावजूद अस्पताल में उसकी कोई सहायता नहीं करता। अगर 24 घंटे में अगर आई बैंक में उसकी आंखों को नहीं पहुंचाया गया तो वह खराब हो जाएंगी और बेटी का संकल्प टूट जाएगा। वहीं दिवाकर की पत्नी का देहांत हो जाता है। अजीम खान ने डॉ. दिवाकर की भूमिका को ऐसे पेश किया लोक भावनात्मक रूप से उस पात्र से जुड़ने से अपने आप को रोक नहीं पाए । दिवाकर अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार से अधिक उस बच्ची के संकल्प को महत्व देता और नेत्रदान की आंखों को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो जाता है। सुकेश साहनी की कहानी पर आधारित इस नाटक को कलाकारों ने प्रभावशाली ढंग से मंच पर प्रस्तुत किया। नाटक में अजीम खान, प्रिया तोमर, आदिल रजा, गरिमा सक्सेना, तपस्या, अर्जुन, नीरज शर्मा और मेहरोज अली खान ने विभिन्न किरदार पेश किए।