धूल के गुबार में सिसकती जिंदगी, रेंगते वाहन
जागरण संवाददाता, बरेली। यहां बस दर्द भरे झटके और चारों तरफ फैली धूल है। धूल भी इतनी कि वाहन गुम हो जाते हैं। सफर एक बुरा ख्वाब बन चुका है और जिंदगी सिसक रही है। राहगीर झेल रहे हैं और निजाम चुप है। एक साल गुजर चुका। अगले साल भी भी राहत की उम्मीद कम है। कितना और वक्त लगेगा कहा नहीं जा सकता, क्योंकि काम की रफ्तार सुस्त है। गढ्डे गहरे हो रहे हैं और धूल का गुबार बढ़ता जा रहा है। बाशिंदों को इस रात की सुबह का बेसब्री से इंतजार है। संयम जवाब दे रहा है। इन दिक्कतों को बयां करता यह सफर-
बरेली से नैनीताल रोड पर हमारा सफर ठीक सवा बारह बजे शुरू होता है। नवाब हाफिज रहमत खां गेट पार करते ही कार खंदक में तब्दील हुई सड़क पर उतर गई। निर्माण के चलते आधी सड़क पर मिंट्टी के बड़े-बड़े टीले खड़े हैं। वाहनों की आवाजाही से उड़ने वाली धूल राहगीरों को धूसरित कर दे रही है। 12 बजकर 29 मिनट पर दोहना गांव के समीप धूल भरे सफर का अंतहीन सिलसिला शुरू होता है। एक वाहन गुजरता है तो तीन से चार मिनट तक सड़क से 15 फिट ऊपर तक धूल उड़ती है। पीछे चल रहे वाहन के चालकों को आगे कुछ दिखाई नहीं पड़ता। अभयपुर होते हुए हम भोजीपुरा पहुंच चुके हैं। यहां बड़ा बाईपास के लिए ओवरब्रिज का निर्माण चल रहा है। भोजीपुरा थाने से सौ मीटर तक रोड ठीक मिला। वाहन फर्राटा भरना शुरू करता कि इससे पहले ही फिर उबड़-खाबड़ सड़क का सिलसिला शुरू हो जाता है। उड़ती धूल राहगीरों में दहशत पैदा कर रही है। हर राहगीर धूल से बचने को चेहरे पर कपड़ा बांधे है। सड़क के बीच गहरे गढ्डों से लग्जरी वाहन बैलगाड़ी की तरह हिलडुल रहे हैं। डेढ़ बजे हम अटामांडा बाजार में थे। यहां धूल से दुकानदारों का जीना दूभर है। वे बाल्टी से पानी छिड़ककर किसी तरह धूल को रोकने की नाकाम कोशिश करते दिखाई दिए। दुकानदारों ने बताया कि हर घंटे पर पानी छिड़कना मजबूरी है। वे सांस के रोगी हो रहे हैं। अटमांडा से दो किलोमीटर दूर जाने पर जादवपुर कस्बा मिलता है। यहां पर रफीस मियां परेशान हैं कि उनके नाश्ते की दुकान पर राहगीरों ने आना छोड़ दिया। क्यों के सवाल पर बोले.देख नहीं रहे हो सारी धूल हमारी दुकान में घुसी जा रही है। जादवपुर के बाद हम दो बजकर 41 मिनट पर देवरनिया पहुंचे। यहां भी वहीं कहानी। इसके बाद गन्ना उत्पादक महाविद्यालय बहेड़ी के सामने रोड इतना खराब की पूछो मत। कॉलेज के पास मिले स्नातक के छात्र राहुल ने बताया कि यहां से घर जाने पर धूल से पूरा शरीर सन जाता है। हम करीब तीन बजे बहेड़ी बाजार में दाखिल हो चुके हैं। बीच में इधर-उधर करीब एक घंटे रुकने को निकाल दिया जाए तो बरेली से बहेड़ी तक पहुंचने में हमें दो घंटे लगे। जबकि करीब 45 मिनट के सफर में एक घंटा भी नहीं लगना चाहिए था। बरेली-नैनीताल मार्ग को फोरलेन करने का काम दिसंबर 2012 से शुरू हुआ है। मार्च 2015 में निर्माण पूरा होना है। आधी सड़क का निर्माण वुडहिल एजेंसी तो आधी सड़क का निर्माण पीएनसी कंपनी करा रही है।
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राहगीरों का दर्द
इस सड़क पर गुजरने पर रोज संघर्ष करना पड़ता है। धूल से आंखे लाल हो जाती हैं। उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलना मुश्किल है।
दोहना के पास मिले नोशे
धौराटांडा से बरेली तक जाने में हालत खराब हो जाती है। महीने में एक बार बरेली कोर्ट में तारीख में जाना पड़ता है। धूल से एलर्जी हो जाती है।
दोहना के पास मिले शमसुज्जमा इदरीसी
इस रोड पर चलने पर भयानक अनुभव होता है। जब तक सफर पूरा नहीं हो जाता दुर्घटना का डर बना रहता है। भगवान से प्रार्थना कर घर से निकलता हूं।
वीरेंद्र कुमार, अटामांडा
गर्मी के मौसम में तेज हवाओं के चलने से उड़ती धूल से हम दुकानदार परेशान हैं। तमाम लोग एलर्जी का इलाज करा रहे हैं। मेरा जुकाम तो ठीक ही नहीं हो रहा है।
दीप, दुकानदार, भोजीपुरा
सड़क की धूल सीधे दुकान में घुसती रहती है। इससे हमारे नाश्ते की दुकान पर राहगीर आने से कतराते हैं। दो साल से सड़क के निर्माण ने धंधा मंद कर रखा है।
सिद्दीक, मिष्ठान्न विक्रेता, जादोपुर
इस खराब सड़क पर चलने से टेंपो चालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। बरेली से बहेड़ी तक चार लीटर तेल खर्च हो रहा है।
अकबर अली, जादोपुर
सड़क की धूल से दुकानदारी करना मुश्किल हो गया है। धूल के चलते फल की दुकान पर ग्राहक ही नहीं आते। रोज घंटे-घंटे पर सामने सड़क पर पानी छिड़कना पड़ता है।
मंगली, देवरनिया