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भरत में जो भाव, वही संतत्व की पराकाष्ठा

जागरण संवाददाता, बरेली : श्रीत्रिवटीनाथ मंदिर में चल रही श्रीरामचरितमानस कथा के पांचवे दिन कथा व्यास

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Apr 2017 12:56 AM (IST)Updated: Mon, 24 Apr 2017 12:56 AM (IST)
भरत में जो भाव, वही संतत्व की पराकाष्ठा
भरत में जो भाव, वही संतत्व की पराकाष्ठा

जागरण संवाददाता, बरेली : श्रीत्रिवटीनाथ मंदिर में चल रही श्रीरामचरितमानस कथा के पांचवे दिन कथा व्यास पंडित उमाशंकर महाराज ने संत की महिमा का बखान किया। वह बोले, भरतजी भगवान राम से संत की महिमा बताने का अनुरोध करते हैं। इसके बाद भगवान उन्हें अपने सामने बैठा लेते हैं और जो लक्षण उनमें दिखाई देते हैं वही बताते जाते हैं। प्रभु कहते हैं भरतजी तो साक्षात संतत्व की मूर्ति है। जो भाव भरतजी में है वही संतत्व की पराकाष्ठा है। भरत ने प्रभु की पादुकाओं को सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया और नित्य उनका पूजन करके उनकी आज्ञा से ही राज काज करते रहे। कथा व्यास ने बताया कि जो गुरु को मनुष्य के समान मानता है, मंत्र में अक्षर बुद्धि रखता है तथा मूर्ति में पत्थर बुद्धि रखता है उसको कभी परमार्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती है। यदि भाव से पूजा की जाती है तो मूर्ति भी बोल उठती है। भरत ने हनुमान जी से कहा कि तुम पर्वत समेत मेरे बाण पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें श्री राम के पास पहुंचा दूंगा। हनुमान जी को आश्चर्य हुआ कि मैंने ऐसा कोई बाण आज तक नहीं सुना जो ईश्वर के पास पहुंचा दे। हनुमान जी भगवान से कहते हैं कि एक अंतर यह जरूर है आपका बाण तो मरने के बाद आपके पास पहुंचाता है लेकिन भरत जी का तो जीते जी आपके पास पहुंचा देता है। कहते हैं कि यह शक्ति तो सच्चे संत के पास ही हो सकती है जो किसी को जीते जी ही प्रभु के पास पहुंचा दे।

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भगवान श्रीराम कहते हैं कि मेरे भक्त का लक्षण है कि वह किसी से कोई आशा नहीं रखता है। जीवन में हमें अपना कर्तव्य बोध होना चाहिए और अपना दायित्व भली भाति निभाने का प्रयास करना चाहिए। कथा के बाद आरती व प्रसाद वितरण हुआ। कथा के दौरान मंदिर कमेटी के प्रताप चंद्र सेठ, हरिओम अग्रवाल, संजीव औतार अग्रवाल समेत अन्य श्रद्धालु मौजूद रहे।


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