सीए का सपना छोड़ किसानों को उन्नत कर रहे प्रतीक
जागरण संवाददाता, बरेली : आज का युवा पढ़ाई के बाद कारपोरेट जगत में नौकरी के ख्वाब देखता है, वहीं प
जागरण संवाददाता, बरेली :
आज का युवा पढ़ाई के बाद कारपोरेट जगत में नौकरी के ख्वाब देखता है, वहीं प्रतीक बजाज कुछ अलग करने की ठानी। मां-पिता उन्हें सीए बनाना चाहते थे लेकिन उनके सपने को छोड़ते हुए 19 वर्ष की आयु में किसानों की तरक्की के लिए कार्य शुरू कर दिया। आज वह वर्मी कम्पोस्ट प्लांट स्थापित कर बड़ी संख्या में किसानों को नेचुरल और जैविक खाद मुहैया करा रहे हैं। जिसकी सहायता से किसान कम लागत में अच्छा उत्पादन कर रहे हैं। जो उन्हें भी अच्छा मुनाफा हो रहा है।
प्रतीक बताते हैं कि तीन साल पहले वह अपने भाई के साथ आइवीआरआइ में कामधेनु योजना के एक कार्यक्रम में गए थे। यहां वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने को लेकर एक लेक्चर सुना। तभी से इरादा बदल गया। कम्पोस्ट खाद बनाने और किसानों को उसकी महत्ता और उपयोग के बारे में जागरूक करने का मन बनाया। आइवीआरआइ के कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़ गए। वर्मी कम्पोस्ट बनाने का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद इसे बनाने का अभ्यास शुरू कर दिया। जब अच्छे परिणाम मिले तो इसे ही अपना व्यवसाय बना लिया।
बड़ा बाइपास के पास स्थित बरधौली गांव में सात बीघा जमीन पर वर्मी कम्पोस्ट प्लांट स्थापित किया। यहां तैयार होने वाली जैविक खाद को वह किसानों को मामूली दामों पर उपलब्ध करा रहे हैं। उनके प्लांट की खाद का उपयोग करने से तमाम किसान फसल का बहुत अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। साथ ही फसल लगाने में कीमत में कमी आई है।
बड़ा बाइपास के कचरे से बनाई खाद
प्रतीक ने शुरुआती तौर पर फसलों के कचरे से खाद बनाना शुरू किया। एक दिन बड़ा बाइपास से गुजरते हुए उनकी नजर मंडी से बड़ी मात्रा में फेंकने को आए केले के पत्तों पर पड़ी। प्रतीक ने इनसे खाद बनाने की सोची। इससे बड़ा बाइपास पर कचरे की समस्या भी दूर हो गई और उन्हें खाद के लिए कच्चा माल भी मिल गया।
नीम की खाद ने दिलाई पहचान
नीम के औषधि और कीटनाशक गुणों से हर कोई वाकिफ है। प्रतीक ने नीम की पत्ती से कीटनाशक कम जैविक खाद तैयार की। जिसने उन्हें अलग पहचान दिलाई। खुद आइवीआरआइ के वैज्ञानिक उसकी सोच के कायल हो गए। कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ. रंजीत बताते हैं कि नीम की पत्तियों से तैयार वर्मी कम्पोस्ट खाद में उर्वरक और कीटनाशक दोनों की क्षमता है। इससे फसल की जड़ों में रहकर नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का नाश हो जाता है। साथ ही उत्पादन भी कई गुना बढ़ जाता है।