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इतिहास रचना ही मेरी फितरत

जागरण टीम, बरेली : मैं रुहेलखंड हूं..। स्वर्णिम अतीत का साक्षी, इतिहास का करीबी..। पहचान का मैं म

By Edited By: Published: Tue, 30 Sep 2014 08:16 PM (IST)Updated: Tue, 30 Sep 2014 08:16 PM (IST)
इतिहास रचना ही मेरी फितरत

जागरण टीम, बरेली : मैं रुहेलखंड हूं..। स्वर्णिम अतीत का साक्षी, इतिहास का करीबी..। पहचान का मैं मोहताज नहीं। किस्सों की हर जुबां पर आता हूं। दिलों से दूर आज भी नहीं हुआ, वर्तमान का सारथी बनकर बदस्तूर धड़क रहा हूं..। हां, इस सफर में मैंने पड़ाव तमाम देखे हैं। तरक्की की उड़ान देखी है, रिश्ते बनते-बिगड़ते देखे, नफरत की टीस झेली तो दोस्ती की इबारत भी लिक्खी। कभी लड़खड़ाया, कभी संभला मगर रुका और थका नहीं। यह मेरी मदमस्त चाल ही थी, मंगलवार को एक बार फिर दुनिया के लिए मिसाल बन गया..अपने हमराह की बदौलत। उस पहल की खातिर, जो मेरी सूरत बदलने को अर्से से छटपटा रहा थी। यह मेरे 'अपनों' की कोशिश का ही नतीजा था, पुकार उठी तो मकसद को मंजिल तक पहुंचाने वालों की कतारें लग गईं। मंच सजा, लाखों की भीड़ उमड़ी और लिख दी मेरे भविष्य की सुनहरी गाथा..दृढ़ निश्चय और संकल्प के साथ। जगह-जगह महाशपथ उठाकर कि पहले खुद बदलेंगे और फिर मुझे..।

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देश बदलाव की हुंकार भर रहा है। दिल्ली के तख्त पर काबिज सरकार की नजरें मुझपर भी इनायत हुईं। बदलाव के लिए मेरे दिल (बरेली) को चुना है। तभी से खुश हूं लेकिन एक वेदना बार-बार टीस बनकर मन को व्यथित कर रही थी। यह सोचकर कि अव्यवस्थाओं के बेदर्द खंजरों ने जिस ढंग से मेरा 'जिस्म' तार-तार किया क्या उसकी भी धार कुंद हो पाएगी..? सोच के इसी सागर में डूबकर उदास था, तभी मेरे टूटे भरोसे को एक पुकार ने संबल दिया..स्मार्ट सिटी, स्मार्ट सिटीजन। यह आवाज उठी थी वक्त-वक्त पर मेरी खासियत से तार्रुफ (परिचय) कराने वाले 'दैनिक जागरण' अखबार से। शुरुआत अकेले थी मगर करवां कब बन गया, मैं खुद दंग हूं। कोशिश का सफर महज 19 दिन का हुआ था, पूरा आवाम मेरी खिदमत को उमड़ पड़ा। दिल (बरेली) को संवारने की बात उठी तो मेरी भुजाएं (बदायूं, शाहजहांपुर और पीलीभीत) भी फड़फड़ा उठीं। अंग-अंग (गली-मुहल्ले) मदद को दौड़ पड़े।

संयोग भी गजब का देखो। जिस 'मंगल कामना' (मंगलयान की सफलता को लेकर) पूरी दुनिया में मेरे देश के गुण गा रही, मेरे दामन में उपलब्धि भी उसी मंगल को दर्ज हुई। वक्त बेशक पहले से मुकर्रर था मगर सफलता की कोशिशें किसी 'मंगल मिशन' से कम न थीं। सुबह से ही स्कूलों, सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक स्थानों पर मेरे चाहने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। न कोई हल्ला, न अव्यवस्था। मन में उल्लास, इरादे फौलादी और हर चेहरा आत्मविश्वास से लबरेज। संख्या कसौटी पर आंकी गई तो तादात 21 लाख के करीब थी। कम नहीं होती यह संख्या न किसी व‌र्ल्ड रिकार्ड से पीछे..। वो भी तब, जिस भीड़ की शक्ल देखने को हमारे नेता रुपया पानी की तरह बहाते हैं, हथकंडे अपनाते हैं वह मुझे बदलने का संकल्प लेकर यूं ही दौड़ी चली आई। क्या आम, क्या खास.., सरकारी अफसर और नेता। महिलाएं बच्चे, बूढ़े और जवान। हर कोई कंधे से कंधा मिलाकर मेरी बदहाली को मिटाने के लिए साथ खड़ा दिखा।

बरेली का शुक्रिया। 11 लाख लोग मेरी खिदमत में आए। राजकीय इंटर कॉलेज पहुंचे उन महानुभाव, बच्चों को भी धन्यवाद जो मेरे साथ खड़े दिखे। पिछड़ेपन के लिए बदनाम बदायूं को कोटि-कोटि नमन जिसने पांच लाख लोग जुटाए महाशपथ के लिए। शाहजहांपुर को सलाम, जहां बदलाव के लिए तीन लाख लोग गवाह बने। कसर पीलीभीत ने भी नहीं छोड़ी और 1.53 लाख जागरूक नागरिकों ने मुझे बदलने की ठानी।


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