कैंपस में मिलेगा हिंदी को ठौर
जागरण संवाददाता, बरेली : एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के माथे पर हिंदी की उपेक्षा का लगा दाग जल्द ही मिटने के आसार हैं। वर्षो बाद ही सही, राष्ट्र भाषा को कैंपस में ठौर मिलने की आस जाग उठी है। यूजीसी ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत हिंदी विभाग को लेकर विश्वविद्यालय से प्रस्ताव मांगा है। यूजीसी सभी स्टेट और सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में हिंदी भाषा के उत्थान के लिए प्रयास कर रहा है। इसके लिए हिंदी विभाग का होना जरूरी है।
विश्वविद्यालय में लंबे से हिंदी विभाग स्थापित करने की मांग उठती रही है। छात्रों के साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों ने भी इसके लिए आवाज उठाई लेकिन हिंदी विभाग का सपना पूरा नहीं हो सका। 'दैनिक जागरण' ने भी राष्ट्र भाषा के सम्मान को लेकर अभियान चलाया, जिसके बाद शासन तक मामला गूंजा। लिहाजा अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने ही इसके लिए प्रयास शुरू किए हैं ताकि जिन राज्य और सेंट्रल यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग नहीं हैं वहां उसकी स्थापना की जा सके। इसके लिए सभी से प्रस्ताव मांगे हैं। यूजीसी से हरी झंडी मिलने के बाद विश्वविद्यालय प्रस्ताव तैयार करने में जुट गया है।
शिक्षक और ढांचागत सुविधाओं का पहले से ही प्रावधान
विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग के लिए पहले से ही शिक्षकों के पद और ढांचागत सुविधाओं का प्रावधान हैं। एक प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर और चार असिस्टेंट प्रोफेसर के पद सृजित हैं। ढांचागत सुविधाओं में पुस्तकें एवं पत्र पत्रिकाओं के लिए प्रति वर्ष एक लाख रुपये, संगोष्ठी, सम्मेलन और कार्यशाला के लिए दो लाख रुपये प्रतिवर्ष तथा आकस्मिक व्यय के लिए प्रतिवर्ष एक लाख रुपये का प्रावधान है। शोध और डिप्लोमा कोर्स के संचालन के भी निर्देश है। यूजीसी ने एक फॉर्मेट जारी कर प्रस्ताव मांगा है। उम्मीद जताई जा रही है कि विश्वविद्यालय में जल्द हिंदी विभाग की स्थापना हो सकेगी।
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विश्वविद्यालय पहले से ही हिंदी विभाग के लिए प्रयास कर रहा है। यूजीसी ने प्रस्ताव मांगा है। जल्द ही प्रस्ताव तैयार कराकर यूजीसी को भेजा जाएगा। प्रयास है कि जल्द हिंदी विभाग की स्थापना की जाए।
-प्रोफेसर मुशाहिद हुसैन, कुलपति रुहेलखंड विश्वविद्यालय