ऑटो चालक बन साफिया ने दिया परिवार को संबल
बाराबंकी, फालिश ने पिता को दिव्यांग कर दिया तो परिवार की नाव बीच मझधार में फंस गई। घर में खाने पीने
बाराबंकी, फालिश ने पिता को दिव्यांग कर दिया तो परिवार की नाव बीच मझधार में फंस गई। घर में खाने पीने की समस्या और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए परिवारीजनों को दूसरों का मुंह देखना पड़ता था। ऐसे में परिवार की सबसे छोटी सदस्य साफिया ने संघर्ष कर अपने परिवार की नाव को मझधार से बचाकर किनारे लगाया। साफिया ऑटो चलाकर न केवल पिता का इलाज कराती है, बल्कि परिवार का पालन पोषण भी कर रही है। कोतवाली नगर के मुहल्ला भीतरी पीरबटावन निवासी मोहम्मद सगीर ऑटो रिक्शा चलाते थे। जिसे वह अपनी पत्नी राबिया, दो पुत्री सोफिया और साफिया का जीवन यापन करते थे। करीब एक वर्ष पूर्व पिता मो. सगीर को फालिश का अटैक पड़ गया। वह दाहिने हाथ और पैर से बिल्कुल लाचार हो गए। उनके इलाज में परिवार की कुल जमा पूंजी समाप्त हो गई। करीब छह माह तक ऐसे ही चलता रहा फिर साफिया ने एक जानने वाले ऑटो रिक्शा चालक से ऑटो चलाना सीखा। कुछ लोगों ने एतराज तो किया, लेकिन साफिया का इरादा पक्का था। कुछ दिनों में वह ऑटो चलाना सीख गई। अब साफिया अपने पिता के ऑटो रिक्शा चलाने लगी और धीरे-धीरे सवारियां भी ढोने लगी। सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक वह ऑटो चलाती है। इससे होने वाले कमाई से वह अपने पिता का बेहतर इलाज करा पा रही है।
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जिले की पहली ऑटो चालक : विपरीत परिस्थितियों ने साफिया ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। जिले में वह पहली ऑटो चालक है।
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परिवार ने दिया साथ : इस संघर्ष में साफिया के पूरे परिवार ने उसका भरपूर साथ दिया। उसकी मां देवा रोड पर एक गुमटी लगाकर पान, टॉफी आदि बेचती हैं। शाम पांच बजे के बाद साफिया ऑटो खड़ाकर मां के साथ दुकान में बैठती और उसका हाथ बटाती है।
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नहीं पढ़ सकी साफिया : बड़ी बहन सोफिया को पिता ने पढ़ा लिखा कर स्नातक (बीए) कराया, लेकिन साफिया केवल कक्षा पांच तक ही शिक्षा हासिल कर सकी। उसकी मां राबिया बताती है कि साफिया बचपन से ही बहुत बीमार रही है। अत्यधिक दुर्बल होने के कारण वह पढ़ाई नहीं कर सकी। अब वह फिर पढ़ाई शुरू करने की तैयारी कर रही है।