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हजारों अमन पसंद पर भारी हैं मुट्ठी भर उपद्रवी

बाराबंकी : सिद्धौर में शुरू हुए उपद्रव में यहां का आम व्यक्ति शामिल नहीं है और न ही यहां इतिहास ही स

By Edited By: Published: Sun, 30 Aug 2015 12:14 AM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2015 12:14 AM (IST)
हजारों अमन पसंद पर भारी हैं मुट्ठी भर उपद्रवी

बाराबंकी : सिद्धौर में शुरू हुए उपद्रव में यहां का आम व्यक्ति शामिल नहीं है और न ही यहां इतिहास ही सांप्रदायिक रहा है। यहां की खुशहाली को सियासत की नजर लग गई। शुक्रवार को शुरू हुई ¨हसा में मुट्ठी भर उपद्रवी ही शामिल हैं। प्रशासनिक ढिलाई से उनके हौसले बुलंद हैं। आम आदमी के चेहरे बता रहे हैं कि उन्हें यह उपद्रव रास नहीं आ रहा है लेकिन पंचायत चुनाव की सियासत इस आग में घी डाल रही है।

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लगभग एक दशक पहले बनी इस नगर पंचायत की आबादी लगभग साढ़े बारह हजार है। मिश्रित आबादी होने के बावजूद कभी यहां मामूली विवाद भी नहीं हुआ। ¨हदू संख्या में अधिक होने के बाद भी आर्थिक रूप से कमजोर है। उनकी आबादी लगभग साढ़े छह हजार है जबकि मुस्लिम आबादी छह हजार के आसपास है। नगर पंचायत से लगभग दस ग्राम सभाएं सटी हुई हैं। इनकी आबादी भी मिश्रित है। यहां के लोगों को याद भी नहीं है कि धर्म के नाम पर इस नगर पंचायत व आसपास के गांवों में कभी कोई विवाद हुआ हो। जमीन जायदाद के विवाद हुए भी तो वह दो परिवारों तक ही सीमित रहे। ¨हदू ईद की खुशियों में मुस्लिम भाइयों का साथ देते रहे तो मुसलमानों ने भी दीपावली पर दीप जलाने से परहेज नहीं किया। 85 वर्षीय रसूलन बताती हैं कि उनकी याद में कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ। पहली बार वे ऐसी स्थिति देख रही हैं।

इस बार भी विवाद बस के परिचालक और यात्री के बीच ही था। अलग-अलग धर्मों के होने के कारण विवाद ने उपद्रव का रूप भले ही धारण कर लिया हो मगर इस उपद्रव में शामिल होने वालों की संख्या सैकड़े में भी नहीं है। यह मामला भी शांत हो जाता यदि पुलिस का रवैया सख्त होता और प्रशासन ने उपद्रव से पहले ही सख्ती बरती होती। क्षेत्रीय लोग कहते हैं कि किसी को किसी से शिकायत नहीं है मगर नेता लोग मामला शांत होने दें तब न। स्पष्ट रूप से लोग इशारा भी करते हैं मामला साफ है कि पंचायत चुनाव की सियासत इस आग में घी डाल रही है। आसपास के गांवों में शुरू हुई ¨हसा को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। उपद्रव में भी पंचायत के दावेदारों की सक्रियता देखी जा सकती है। जिन पर यकीन करके लोगों ने अपना रहनुमा चुना था लोग अब उन पर भी उंगली उठा रहे हैं। आम जनता ही नहीं प्रशासनिक अधिकारी भी समझ चुके हैं कि उपद्रव की लपटें कहां से उठ रही हैं। मगर उनमें पानी डालने का साहस वे शायद जुटा नहीं पा रहे हैं।


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