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इस बार दो जून की रोटी के भी लाले

बाराबंकी : तहसील हैदरगढ़ क्षेत्र का गांव छीतापुरवा मजरे पोखरा के बाद रायबरेली जिले की सीमा शुरू हो ज

By Edited By: Published: Mon, 20 Apr 2015 12:07 AM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2015 12:07 AM (IST)
इस बार दो जून की रोटी के भी लाले

बाराबंकी : तहसील हैदरगढ़ क्षेत्र का गांव छीतापुरवा मजरे पोखरा के बाद रायबरेली जिले की सीमा शुरू हो जाती है। छीतापुरवा ऐसा गांव है जहां पर करीब एक सैकड़ा परिवार रहते हैं। इनमें से 80 फीसदी परिवार दलित हैं। जिनकी रोजी-रोटी का जरिया महज खेती और मजदूरी है। ¨सचाई के साधन के अभाव में इस गांव की जमीन बहुत अधिक उपजाऊ नहीं है। गेहूं व धान की फसल यहां के किसानों की मुख्य फसल है। हुदहुद के प्रभाव में धान की फसल बर्बाद हो गई थी और गेहूं की फसल ओलावृष्टि व बरसात ने बरबाद कर दी। 60 फीसदी से ज्यादा गेहूं की फसल लगभग सभी किसानों की खराब हुई है।

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जागरण ने रविवार की पूर्वान्ह करीब सवा ग्यारह बजे इस गांव के किसानों का हाल पूछा तो फसल बर्बादी की दास्तां सुनाते किसानों की आंखें छलक आईं। मीरावती, धनपता व रामवती नामक तीन बहनों के संयुक्त खाते का पक्का एक बीघे खेत है। इस खेत में बर्बाद हुई गेहूं की फसल को किसी तरह समेटकर पूरा परिवार थ्रेशर में उसकी मड़ाई की तैयारी में जुटा दिखा था। चिलचिलाती धूप में उनके चेहरे पर बची-खुची फसल को बचाने की फिक्र साफ दिखाई दे रही थी। मीरावती ने बताया कि धान की फसल खराब हो गई थी। अब इस फसल से ही खाने का सहारा था। यह कहते हुए मीरा ने चार-पांच बालियां गेहूं की हाथ में मसलीं और दिखाते हुए बोली कि यह देखिए 10-12 दाना ही हाथ में आए। वह भी काफी सिकुड़े हुए हैं। ऐसे में अब खाने भर का अनाज कहां से होगा फिर भी खेत में यूं ही तो फसल को जोता नहीं जा सकता। इस बार तो सूखी रोटी खाने के भी लाले पड़ जाएंगे। संतलाल ने बताया कि उसकी भी एक बीघे फसल खराब हो गई। रामसुमिरन ने बताया कि उसके 18 बिस्वा खेत में पिछले साल ढाई ¨क्वटल गेहूं निकला था मगर इस बार करीब एक ¨क्वटल गेहूं निकला है वह भी काफी सिकुड़ा व सड़ा हुआ है। नहर ¨सचाई का साधन नहीं है। ऐसे में गेहूं व धान की खेती ही की जाती है। राजेंद्र ने बताया कि उसकी भी दो बीघ फसल में मात्र एक ¨क्वटल बदरंग और सिकुड़ा हुआ गेहूं निकला।

गांव में हैं लघु काश्तकार: छीतापुरवा में एक बीघे से चार बीघे के मध्य ही रकबा वाले किसान हैं। इनमें पिछड़ी जाति के एक दर्जन परिवार हैं। शेष अनुसूचित जाति के हैं। करीब पांच सौ बीघे गेहूं की फसल 50 से 70 फीसद तक खराब हुई है।

नहीं हुआ सर्वे: किसान रामसुमिरन, राजेंद्र, संतलाल आदि ने बताया कि खेत में कोई राजस्वकर्मी सर्वे करने नहीं आया। ऐसे में फसल का मुआवजा कैसे मिलेगा? यह समझ में नहीं आता।

सभी किसानों को मिलेगा मुआवजा: एसडीएम हैदरगढ़ डीपी ¨सह ने छीतापुरवा गांव में सर्वे के संदर्भ में कहा कि हर खेत पर जाकर जांच करना संभव नहीं है। राजस्व कर्मियों ने गांव में जाकर खेतों को देखा है। उसी के आधार पर नुकसान का आकलन हुआ है। 18 हजार रुपये हेक्टेअर की दर से फसल का मुआवजा दिया जाना है। 1500 रुपये से कम किसी भी किसान को मुआवजा नहीं दिया जाएगा। भले ही उसके पास दो-चार बिस्वा जमीन क्यों न हो।


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