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गुरु भक्ति में झूमा जैन समुदाय

By Edited By: Published: Tue, 23 Sep 2014 12:59 AM (IST)Updated: Tue, 23 Sep 2014 12:59 AM (IST)
गुरु भक्ति में झूमा जैन समुदाय

बाराबंकी: मुनि सौरभ सागर के दीक्षा समारोह के दूसरे दिन देश भर से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालु ढोल-नगाड़े और बैंड-बाजे के बीच जमकर नाचे। जैन समुदाय की बालिकाओं और महिलाओं ने मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की। इस कार्यक्रम में जैनाचार्य के माता-पिता भी सम्मिलित हुए।

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स्थानीय दिगंबर जैन मंदिर के परिसर में ही दीक्षा समारोह के लिए विशाल पंडाल बनाया गया। इस अवसर पर मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया गया। दीक्षा समारोह में सम्मिलित होने के लिए देश भर से जैन समुदाय के लोगों का तांता लगा हुआ है। सोमवार को भी यह सिलसिला जारी रहा। सुबह की शुरूआत पुष्प दंत सागर के चित्र के अनावरण व माल्यार्पण के साथ प्रारंभ हुई। फिर जैनाचार्य का प्रवचन और इसके बाद उन्हें श्रीफल अर्पित करने के लिए नाचते-गाते श्रद्धालुओं की आमद शुरू हुई। विभिन्न जिलों से आए लोगों ने गुरु भक्ति से ओतप्रोत होकर जयकारे लगाए। इस अवसर पर भजन की प्रस्तुति रख लो मेरी लाज, दे दो थोड़ा प्यार तेरा क्या घट जाएगा जैसे भजनों ने भक्तों को झूमने पर विवश कर दिया। यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहा।

उपस्थित जैन समुदाय को संबोधित करते हुए मुनि श्री सौरभ सागर ने कहा कि यह दीक्षा तभी पूरी होगी जब यहां आए लोग दुर्गुणों को उन्हें समर्पित कर देंगे क्योंकि इससे उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला लेकिन यहां आए लोगों का जीवन सुधर जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर लोग यह आशा लेकर आए हैं कि उन्हें देखने मात्र से ही उनकी मनोकामना पूरी हो जाएगी तो यह होने वाली नहीं। क्योंकि दवाई की दुकान में बैठने से रोग ठीक नहीं होता है। रोग तभी ठीक होगा जब दवा की जाएगी। साधना को अपनाकर ही आत्मकल्याण संभव है। उन्होंने अपनी चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने अपना बाल्यकाल 12 वर्ष की आयु तक माता-पिता को समर्पित किया और युवावस्था के 12 वर्ष गुरु को समर्पित कर दिए। अब जीवन के जो शेष दिन बचे हैं उन्हें वे समाज को समर्पित कर चुके हैं। भक्ति की प्याली पीने जो लोग आए हैं उन्हें त्याग का अमृत पान करना भी जरूरी है। यदि त्याग का पान न किया तो भक्ति का प्याला भी व्यर्थ साबित होगा। उन्होंने कहा कि वस्तु एक होती है लेकिन उपयोग अनेक होते हैं। मोर पंख अगर ग्वाले के पास हों तो वह गाय को सजाता है। वैद्य के पास हो तो औषधि बनाता है। नारायण श्रीकृष्ण के हाथ में हो तो मोर मुकुट बन जाता है और अगर यही मुनियों के पास हो तो पिच्छी का रूप धारण कर लेता है।

इस अवसर पर सोहनलाल सेठी, मनोज जैन, प्रदीप जैन, व‌र्द्धमान जैन, सज्जन जैन, सुधीर जैन, सुनीता छाबड़ा, रागिनी जैन, रत्‍‌नेश जैन, शरद जैन आदि मौजूद थे।


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