मनाई गई दीक्षा जयंती, दूर दराज से पहुंचे श्रद्धालु
बाराबंकी: मुनि श्री सौरभ सागर जी की 20वीं जयंती हर्षोल्लास व गाजे-बाजे के साथ मनाई गई। जिसमें देश-दुनिया के लगभग ढाई हजार श्रद्धालु सम्मिलित हुए। इस अवसर पर मुनि श्री का पाठ प्रक्षालन हुआ। शास्त्र भेंट किया गया तथा विशेष रूप से 20 आरतियों द्वारा आरती की गई। ब्राम्हणी मंडल द्वारा मनमोहक भाव नृत्य प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर मुनि श्री ने कहा कि व्यक्ति दूसरों की दीक्षा जयंती तो बहुत ही उल्लास व हर्षोल्लास से मनाता है किंतु स्वयं की दीक्षा जयंती भी बने ऐसा भाव मन में भी नहीं लाता है। आदमी का स्वभाव स्वयं से ज्यादा पदार्थो की चिंता करने का होता है। जो आत्मा आपकी स्वयं की है उसकी रक्षा उसके प्रति लगाव व प्रेम कदापि उत्पन्न नहीं होता है। अगर यह भाव प्रदर्शित होते हैं तो दूसरे पदार्थो के प्रति।
उन्होंने कहा कि आज के समय में महत्वपूर्ण वही है जो आगे बढ़ने की क्षमता रखता है। अगर कोई तुमसे पूछेगा कि चांदी व लोहे में कौन महत्वपूर्ण है तो तुम झट से कह दोगे चांदी महत्वपूर्ण है परंतु मैं कहता हूं कि चांदी नहीं लोहा महत्वपूर्ण है क्योंकि चांदी में बढ़ने की क्षमता नहीं होती और लोहा पारस का साथ पाकर सोना बनने की क्षमता रखता है। परिवर्तन बाहर की दीक्षा है।
उन्होंने कहा दीक्षा का अर्थ है परिवर्तन। स्वयं के साथ दूसरों के कल्याण का भाव ही दीक्षा की ओर अग्रसर करता है। इससे पूर्व क्षुल्लक प्रेरक सागर जी ने कहा कि मैंने तो प्रभु की मूर्ति सौरभ सागर में देखी है और भावना रखता हूं। इससे पूर्व आचार्य पुष्पदंत सागर जी के चित्र का अनावरण हुआ। दीप प्रज्ज्वलन हुआ। तत्पश्चात महिला मंडल द्वारा मंगलाचरण कर सभा का शुभारंभ किया गया। मुनि श्री द्वारा रचित पत्थर की मानव कृति पुस्तक का विमोचन किया गया। वर्षा योग समिति द्वारा साहित्य का वितरण किया गया। सायंकालीन सभा में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। मुनिश्री की भव्य आरती हुई।