कर्ज और पेट ने किया बिकने को मजबूर
हरी मिश्र बांदा: घर में दाना नहीं,खेतों में फसल नहीं, मनरेगा में भुगतान नहीं, ऊपर से कर्ज चुकाने क
हरी मिश्र
बांदा: घर में दाना नहीं,खेतों में फसल नहीं, मनरेगा में भुगतान नहीं, ऊपर से कर्ज चुकाने का दबाव। हालातों ने अन्नदाता को बाजार में खुद बिकने को मजबूर कर दिया। कम से कम परिवार को रोटी तो मिल जाती है। यह कहना है मजदूर मंडी में ग्राहक के इन्तजार में खड़े बांदा जनपद के पपरेन्दा निवासी किसान रमेश का।
देखा गया तो मजदूर मंडी में भूख और कर्ज से परेशान रमेश ही अकेले नहीं थे। उनके अलावा हमीरपुर जनपद के धवई निवासी बसन्ता व बांदा के पचपहरा निवासी रामआसरे भी किसी ग्राहक के इन्तजार में खड़े थे। सभी किसान हैं तो अपने सीखे हुनर का औजार फावड़ा हाथ में लिए थे। मंडी उखड़ रही थी। ग्राहक न मिलने की मायूसी आंखों में सा़फ दिखाई दे रही थी।
जैसे ही रमेश से उसके हालातों का जिक्र छेड़ा तो सारे जमाने का दर्द चेहरे में सिमट आया। आंखें उस दर्द को छुपा नहीं पा रहीं थी। रमेश ने बताया कि उसके पास 7 बीघा जमीन है। फसल बर्बाद होने पर हिम्मत कर इलाहबाद यूपी ग्रामीण बैंक से 60 हजार लोन ले लिया। उसे नई फसल उगाने में लगाया लेकिन दाना तो नहीं मिला बदले में सारे जहां की दुश्वारियों ने दामन थाम लिया। चार बच्चों के परिवार को पालने में जुटा तो कर्ज दोगुने से जादा 1 लाख 26 हजार हो गया। अब मजदूरी ही अकेला रास्ता बचा है।
कुछ ऐसा ही हाल बसन्ता का मिला। 13 बीघे जमीन की बुवाई के लिए महाजन से पांच फीसद ब्याज में 60 हजार लेने वाला बसन्ता मजदूरी के पैसों से केवल महाजन का ब्याज ही दे पाता है। उसने बताया कि बेटे ने एक पान की गुमटी बांदा में रख ली थी। उसकी लड़खड़ाती आमदनी से घर चल रहा।
बीच में रामआसरे बोल पड़े। उन्हें पहले तो बोलने में डर सता रहा था कि पूछताछ करने बैंक वाले तो नहीं आ गए। फिर जब डर खत्म हुआ तो बोले हमने भी महाजन से 50 हजार कर्ज लिया था। हम मजदूरी करके घर चलाते हैं और दो बेटे कर्ज अदा करते हैं। बोले कभी कभी किस्मत यहां भी खेल कर जाती है। दिक्कत आज जैसे दिन से होती है जब कोई ग्राहक उन्हें खरीदने नहीं आता और भारी मन से उन्हें वापस होना पड़ता है। तब लगता है कि आश लगाये घर वालों से कैसे कहेंगे कि आज मंडी में उनकी कीमत ही नहीं लगी।