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जानवरों के काटने में लापरवाही से बढ़ता रैबीज संक्रमण

बांदा, जागरण संवाददाता : शहर व कस्बों आदि में किस समय लोगों को आवारा जानवर अपना शिकार बना लें, इसका

By Edited By: Published: Tue, 27 Sep 2016 08:05 PM (IST)Updated: Tue, 27 Sep 2016 08:05 PM (IST)
जानवरों के काटने में लापरवाही से बढ़ता रैबीज संक्रमण

बांदा, जागरण संवाददाता : शहर व कस्बों आदि में किस समय लोगों को आवारा जानवर अपना शिकार बना लें, इसका कोई भरोसा नहीं रहता है। हर जगह बेतहाशा विचरण करने वाले कुत्ते के काटने के ज्यादातर लोग शिकार होते हैं, इसके अलावा बंदर, सियार व लकड़बग्घा आदि जानवर के काटने से भी लोगों को रैबीज की चपेट में आने का खतरा बना रहता है। संबंधित विभाग की ओर से जहां इस दिशा में कोई प्रभावी कदम न उठाए जाने से रैबीज का दायरा बढ़ रहा है। वहीं इन जानवरों के काटने के बाद उपचार व घाव के देखभाल में बरती गई लापरवाही भी जान जोखिम में डालने जैसा काम करती है। दोपहर बाद अस्पताल की सामान्य ओपीडी बंद होने के बाद तो अक्सर जानवरों के काटने के शिकार भटकते नजर आते हैं। कस्बे के अस्पतालों से उन्हें शहर के अस्पताल धकेला जाता है तो दूसरी ओर शहर के अस्पताल से कल समय पर आना कहकर लौटा दिया जाता है। जागरूक मरीज व तीमारदार हुए तो वह जरूर बाहर से वैक्सीन खरीदकर अपना काम चला लेते हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग का दावा रहता है कि जिले के आठों ब्लाक सेंटर के अस्पतालों समेत जिला अस्पताल में एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने की व्यवस्था है।

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प्रतिक्रिया -

- रैबीज से बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग को 24 घंटे एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे मरीजों को वैक्सीन लगवाने के लिए बार-बार अस्पताल के चक्कर न लगाने पड़ें।

राजू द्विवेदी

- रैबीज को लेकर लोगों को और जागरूक किए जाने की आवश्यकता है, आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता न होने से कई मरीज देशी दवा का ही सहारा लेते हैं, जो आगे चलकर घातक स्थिति बना सकती है।

कुलदीप निगम

- आवारा जानवरों के काटने के बाद मरीज व तीमारदारों को खुद घाव की अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए, एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाने के साथ मरीज इसके प्रति बिल्कुल भी लापरवाही न बरतें। चिकित्सक के बताए गए दिशा निर्देशों का पालन करें।

शिवकुमार

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- रैबीज के लक्षण

- रैबीज पीड़ित मरीज को एसोफोबिया यानि वह हवा तक से डरने लगता है।

-हाइड्रोफोबिया की शिकायत हो जाती है, मसलन मरीज पानी देखकर दूर भागने लगता है।

- मरीज में गुमशुम रहने के साथ चिड़चिड़ापन सवार होने लगता है।

- रैबीज पीड़ित व्यक्ति की लार बहने लगती है, वह बड़बड़ाना शुरू कर सकता है।

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बचाव के उपाय

- घाव को लगातार बहते हुए पानी नल आदि से एंटी सेप्टिक साबुन से धुलें।

- घाव को खुला रखें, पट्टी आदि से ढक कर न रखें।

- एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने के साथ, काटने वाले जानवर पर दस दिन तक नजर रखें।

- जानवर के काटे स्थान पर नाखून न लगाएं। धूल गंदगी से बचाकर रखें।

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आवारा जानवरों के काटने पर जो वैक्सीन लगती है वह हमारे यहां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। उपचार के साथ मरीज को चिकित्सक की ओर से दी गई सलाह का अनुपालन करना चाहिए।

-डा. एस एन गुप्ता सर्जन जिला अस्पताल बांदा


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