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विलुप्त हो रहे औषधीय वृक्ष नीम, कैंथा

अतर्रा, संवाद सहयोगी : चकबंदी प्रक्रिया के चलते भूमि का स्वामित्व बदलने तथा कृषि एवं भवन भूमि के विस

By Edited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 01:07 AM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 01:07 AM (IST)
विलुप्त हो रहे औषधीय वृक्ष नीम, कैंथा

अतर्रा, संवाद सहयोगी : चकबंदी प्रक्रिया के चलते भूमि का स्वामित्व बदलने तथा कृषि एवं भवन भूमि के विस्तार से वृक्षों के सफाए का सिलसिला आज खतरनाक मुकाम पर आ पहुंचा है। कई औषधीय पौधे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गये हैं।

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बुंदेलखंड में औषधीय महत्व के वृक्ष ग्रामीण अंचलों में विलुप्त हो चुके हैं प्रकृति से बेमेल होते रिश्ते की इंसान को खासी कीमत चुकानी पड़ रही है। आयुर्वेद में विशेष महत्व वाले पीपल, बरगद, नीम, कैथा, बेल, ऊमर, जामुन, आंवला आदि वृक्षों की संख्या में इधर भारी गिरावट आई है। आधुनिकता से चुधिंयायी सरकारों के साथ-साथ समाज शायद इन वृक्षों के औषधीय महत्व को भुला बैठा है। वरिष्ठ चिकित्सक डा. प्रकाशचंद्र यादव कहते हैं कि प्रकृति के साथ सहजीवन का नजररिया छूटने से अनेक बीमारियां बढ़ रही हैं। कई पेड़ों के छाल, वृक्ष, जड़ आदि लाभकारी रहते हैं परंतु लोगों की नासमझी से पेड़ कट ज्यादा रहे हैं पौधरोपण कम हो रहा है। इसी का खामियाजा आज पूरे समाज को भुगतना पड़ रहा है।


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