आज भी लोगों की यादों में बसते हैं बापू
बांदा, जागरण संवाददाता : शहर के कटरा मुहल्ले में स्थित कुंवर हरप्रसाद सिंह की कोठी आज भी बापू की ढेर
बांदा, जागरण संवाददाता : शहर के कटरा मुहल्ले में स्थित कुंवर हरप्रसाद सिंह की कोठी आज भी बापू की ढेरों यादें अपने जहन में दबाए हैं। बांदा के लोगों की यादों में आज भी बापू बसे हुए हैं। अपने बुजुर्गो की बातों में, अपने बचपन की धुंधली यादों में आज भी लोग बापू को याद करके आंखें नम करते हैं। बापू के जन्म दिवस पर एक बार फिर लोगों के मन में उनकी यादें कौंदने लगी हैं।
बताते हैं कि वर्ष 1929 के नवंबर माह लोगों की हुजूम लगा हुआ था। चारों ओर सब एक ही आवाज आ रही थी 'बापू दर्शन दो' इस बात से नाराज होकर जब आचार्य कृपलानी ने कहा क्या गांधी बंदर है। जब चाहो तब दर्शन हो जाएं। इस बात तो सुनते ही बापू बालकनी में आए और बोले हां 'मै सचमुच तुम्हारा बंदर हूं, जैसा चाहोगे, मैं नाचूंगा।' लेकिन बदले में तुम्हें भी मुझसे यह वादा करना होगा कि आज से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करोगे।
बुंदेलों की वीर भूमि बुंदेलखंड जो अपनी वीर गाथा व शौर्य के लिए आदिकाल से ही प्रसिद्ध है। असहयोग आंदोलन के वक्त जब नवंबर 1929 में महात्मा गांधी (बापू) व उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भरी दोहपर को चिल्ला में विशाल जनसभा को आयोजित कर शाम को शहर में रहने वाले हरप्रसाद सिंह की कोठी में रात्रि विश्राम के लिए रूके। बापू के बांदा में ठहरने की जानकारी कुछ ही देर में आसपास तेजी से फैल गई। लोग बापू की एक झलक पाने के लिए कोठी के बाहर पहुंचकर हजारों की संख्या में इकट्ठा हो गए और 'बापू दर्शन दो-बापू दर्शन दो' के नारे लगाने लगे। बापू के आराम में खलल पड़ता देखकर आचार्य कृपलानी लोगों को यह कहकर वहां से जाने को कहने लगे कि अभी बापू 40 किलोमीटर चलकर आए हैं। थोड़ा आराम करने दो। लोग नहीं माने तो आचार्य ने तल्ख होकर कहा कि बापू बंदर तो हैं नहीं कि तुम लोगों को आकर दर्शन देंगे। तब महात्मा गांधी बालकनी पर निकलकर आए और आचार्य कृपालानी को शांत कराते हुए लोगों से कहा कि 'मैं सचमुच तुम्हारा बंदर हूं, जैसा चाहोगे, मैं नाचूंगा।' लेकिन इसके बदले में बस तुम्हे भी आज मुझसे यह वादा करना होगा कि तुम विदेशी वस्तुओं का आज से प्रयोग नहीं करोगे। इसके बाद थोड़ा आराम करने के बाद बापू ने शाम को नगर पालिका परिषद बांदा में दूसरी सभा को आयोजित किया। इसके बाद रात्रि विश्राम के बाद वह अगले दिन वह कुंवर हर प्रसाद सिंह की कोठी से लेकर नवाब टैंक तक पैदल चले। फिर गाड़ी में बैठकर कर्वी (वर्तमान में जिला चित्रकूट) जनसभा को आयोजित करने चले गए। दिन सोमवार को कर्वी में जनसभा को आयोजित करने के बाद वापस आकर दोबारा रात्रि विश्राम बांदा में ही किया। इसके बाद मंगलवार सुबह मटौंध के रास्ते वापस रवाना हो गए।
जब बालक आनंद के सवाल पर बापू हुए थे मौन
अधिवक्ता आदित्य सिंह बताते हैं कि उनके बाबा कुवंर हरप्रसाद सिंह बताते थे कि उनके पिता आनंद जब मात्र चार साल के थे। गांधी जी के आगमन के समय बालक आनंद उनके पास पहुंच गया और पूछा कि बापू, आप विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की बात करते हैं और खुद गाड़ी में क्यों चलते हैं। इसपर बापू कुछ समय के लिए मौन हो गए। कुछ ही पल बाद बापू ने कहा कि बेटा तुम बड़े होकर जब कार बनाओगे तो मैं उसी कार में चलूंगा।