घर का अकेला सहारा भी काल के गाल में समाया
अतर्रा, संवाद सहयोगी : बालू खदान में ट्रैक्टर से कुचलकर काल के गाल में समाया आशाराम पिता की मौत के बाद अकेला परिवार का पालनहार था। उसकी मौत से परिवार के सामने अंधेरा छा गया है।
बउरा केवट की 7 वर्ष पहले बस एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। पत्नी हीरामनी बोल नही सकती थी इसलिए असहाय थी। बउरा का पिता बाबूलाल कुछ दिन तक मजदूरी करके घर की गाड़ी को खींचता रहा। इसके बाद बउरा का पुत्र आशाराम 13 वर्षीय कुछ बड़ा हुआ तो उसने कुछ काम करके परिवार की जिम्मेदारी उठाने लगा। और गांव के ही स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ाई भी करता रहा। छोटी बहन बुधिया का भी दाखिला कक्षा 6 में गांव के ही स्कूल में कराया। बाबा बाबूलाल की माने तो उसकी इच्छा पढ़ लिखकर कुछ बनने की थी। परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था। आशाराम की मौत से मां, बहन बाबा का रो-रोकर के बुरा हाल हो रहा है। इधर घटना करने वाले टैक्टर मालिक की तरफ से दुखी परिवार को एक बीघा खेत, पचास हजार रूपए और साल भर के खाने का भोजन मुहैया कराने की पेशकश किये जाने की बात कही जा रही है।