सदाचारी बनकर धर्म का पालन करना जरूरी
बलरामपुर : धर्म का आचारण वाले व्यक्ति को इहलोक तथा परलोक दोनों में सुख प्राप्त होता है। धर्म वह नहीं
बलरामपुर : धर्म का आचारण वाले व्यक्ति को इहलोक तथा परलोक दोनों में सुख प्राप्त होता है। धर्म वह नहीं है जिसे हम समुदाय में परिभाषित करते हैं बल्कि धर्म वह है जो व्यक्ति के गुणों का वर्गीकरण करता है। दिल्ली से आए आर्य विद्वान महेंद्रपाल आर्य ने आर्य समाज के वार्षिकोत्सव के दौरान कहा कि सत्य, अ¨हसा समेत दस गुणों को धर्म की संज्ञा दी गई है।
उत्तराखंड से आए विद्वान जय प्रकाश ने कहा कि धर्म धारण करने वाला व्यक्ति कभी भी अनाचारी, अशिष्ट, कृतज्ञ तथा परपीड़क नहीं हो सकता और जिस के भीतर ये अवगुण हो उसे धार्मिक नहीं कहा जा सकता। धर्म का पालन सभी के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। जितना सांस लेना। ऊंची शिक्षा अथवा ज्यादा धन कमाना उतना जरूरी नहीं है लेकिन सदाचारी बनकर धर्म का पालन करना हर व्यक्ति के लिए बहुत जरूरी है। बहराइच के ठाकुर प्रसाद ने भजन तथा उपदेश के माध्यम से धर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि केवल दूसरे से धर्म के पालन करने की अपेक्षा करना तब तक बेकार है। जब तक हम स्वयं इसके प्रति समर्पित न हो। धार्मिक परंपराओं का पालन करने वाले व्यक्ति सदैव सम्मान पाते हैं। उत्तराखंड के देव शर्मा ने जप तप को तब तक बेकार बताया जब कि ईश्वर के आदेशों का पालन न किया जाए। तीर्थ यात्राएं भी धर्माचरण से अलग होने पर अपना असर नहीं दिखा सकती लेकिन धर्म का आचरण करना तीर्थ करने से कई गुना बेहतर है। वार्षिकोत्सव से दो सत्रों में यज्ञ, प्रवचन तथा भजन का कार्यक्रम चल रहा है जो 27 फरवरी तक चलेगा। श्रवण कुमार, अखिल कुमार, सचिन कुमार, पारसनाथ, रवि प्रकाश, दिनेश, संजय कुमार, मोतीलाल आदि का विशेष सहयोग रहा।