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कदम-कदम पर उड़ाई जा रही 'चिल्ड्रन बैग एक्ट' की धज्जियां

बलरामपुर : विश्व स्वास्थ्य संगठन व सरकार द्वारा बस्ते के वजन के निर्धारण के लिए बनाए गए नियम निजी स्

By Edited By: Published: Mon, 29 Aug 2016 12:02 AM (IST)Updated: Mon, 29 Aug 2016 12:02 AM (IST)
कदम-कदम पर उड़ाई जा रही 'चिल्ड्रन बैग एक्ट' की धज्जियां

बलरामपुर : विश्व स्वास्थ्य संगठन व सरकार द्वारा बस्ते के वजन के निर्धारण के लिए बनाए गए नियम निजी स्कूल संचालक मानने को तैयार नहीं हैं। स्कूल बैग का वजन कम करने के लिए बने मानकों की धज्जियां कदम-कदम पर उड़ाई जा रही हैं लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आंखें बंद किए है। विशेष चिल्ड्रन बैग एक्ट के बाद भी विद्यालय संचालक नियमों को मानने को तैयार नहीं हैं। स्कूल संचालकों को स्कूल बैग के नियमों की जानकारी तक नहीं है। निजी स्कूल संचालक किताब, ड्रेस व फीस के नाम पर अभिभावकों का खुलेआम शोषण कर रहे हैं। विद्यालय प्रबंधकों की कमाई का यह पूरा खेल विभागीय अधिकारियों की पूरी जानकारी में खेला जा रहा है। बच्चों के कंधे पर लदे बस्ते का बोझ दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है।

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-क्या है चिल्ड्रन बैग एक्ट

बच्चों के कंधे पर बढ़ रहे बस्ते के बोझ को कम करने के लिए केंद्र द्वारा वर्ष 2006 में चिल्ड्रन बैग एक्ट लागू किया गया। इसमें साफ लिखा गया है कि स्कूल बैग का वजन बच्चे के कुल वजन का दस फीसदी ही होना चाहिए। साथ ही इसमें नर्सरी व केजी के बच्चों को स्कूल बैग से मुक्त रखने का निर्देश दिया गया है। इस एक्ट में कक्षा एक व दो के बच्चों के बस्ते का वजन तीन किलो, चौथी व पांचवीं में चार किलो, पांच व छह में सात किलो एवं सातवीं तथा आठवीं में पढ़ने वाले बच्चों के स्कूल बैग का वजन 11 किलो ग्राम निर्धारित किया गया। इन नियमों का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाए जाने का भी प्राविधान है लेकिन यह नियम कागजों में ही सिमट कर रह गए हैं।

कमीशन के खेल में बढ़ा बस्ते का बोझ :

नगर के पहलवारा में रहने वाले राजेंद्र गुप्त बताते हैं कि निजी स्कूलों में विद्यालय प्रबंधन फीस के अलावा किताबों में कमीशन लेकर बच्चों की क्षमता से अधिक किताबें लाद देते हैं। बच्चे बैग लेकर स्कूल जाने और वापस आने में ही थक जाते हैं। इस दिशा में कड़े नियम बनाए जाने चाहिए। प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष अजय प्रताप सिंह बताते हैं कि प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों के लिए तीन से चार किताब ही पर्याप्त होती है। इसका उदाहरण परिषदीय स्कूलों में देखा जा सकता है। निजी स्कूल इसका उल्टा कर रहे हैं। इन स्कूलों में किताब व कार्य पुस्तिका के नाम पर 15 से 20 किताबें लगाई जाती हैं। बच्चा इन किताबों को लाने ले जाने में ही थक कर चूर हो जाता है। अनुराग वैद्य कहते हैं कि निजी स्कूलों के संचालक मनमाने ढंग से जब चाहे ड्रेस किताब आदि बदल अभिभावकों को लूट रहे हैं। संचालक स्कूल में लगाई गई किताबों की खरीद के लिए अभिभावक व बच्चों को उसी पुस्तक विक्रेता का नाम बताते हैं। जिससे उन्हें अच्छा कमीशन मिलता है। शिक्षक नेता धर्मेद्र शुक्ल बताते हैं कि अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने की धारणा में बदलाव लाने की जरुरत हैं। इसी सोच का फायदा लेकर निजी स्कूलों के संचालक किताब, फीस अदि के नाम पर लूट रहे हैं। निजी स्कूलों की मनमानी के विरोध में जल्दी ही जिम्मेदार अधिकारियों से वार्ता की जाएगी।

बच्चों पर उनकी क्षमता से अधिक बस्ते का बोझ डाला जाना पूरी तरह से गलत है। इससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। निजी विद्यालयों को बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठयक्रम के अनुसार ही किताबें स्कूल में लगानी चाहिए। जिससे बस्ते का बोझ कम रहे। यदि विद्यालय अलग से कुछ करना चाहता है तो विशेष किताबें स्कूल में ही रखनी चाहिए। इससे बच्चों के बस्ते का बोझ कम रहेगा।

- डॉ. दिव्य दर्शन तिवारी, एसोसिएट प्रोफेसर

एमएलके महाविद्यालय


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