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पीछे छूटी विकलांगता, दूसरों के लिए नजीर बने सुधीर

बलरामपुर : 'आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है'। प्रसिद्ध गायक मुकेश कुमार के गाए इस गीत की लाइनें स्

By Edited By: Published: Thu, 30 Jul 2015 11:22 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2015 11:22 PM (IST)
पीछे छूटी विकलांगता, दूसरों के लिए नजीर बने सुधीर

बलरामपुर : 'आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है'। प्रसिद्ध गायक मुकेश कुमार के गाए इस गीत की लाइनें स्टेशन रोड पर निवास करने वाले दोनों पैर से विकलांग सुधीर मोदनवाल पर सटीक बैठती हैं। शारीरिक अपंगता और आर्थिक विपन्नता के अलावा अपनों द्वारा दूर कर दिए जाने के बीच अपने परिश्रम और संयम से स्वयं को संभालने वाले सुधीर अब मजबूर नहीं है। उनका हरपल का साथी व्हील चेयर उनके साथ कदम से कदम मिलाकर उनकी हर समस्याओं को दूर कर दिया है। एक-एक पैसे को मजबूर सुधीर अब अपने दम पर व्यापार भी कर रहे हैं तथा स्वयं तहसील में बैठकर स्टांप पेपर बेचकर व टाइप कराकर अपना गुजारा चला रहे हैं। 35 वर्षीय सुधीर मोदनवाल जब छ: माह के थे उसी समय पोलियो से उनका दोनों पैर खराब हो गया और वे विकलांग हो गए। छ: भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर सुधीर के पिता की मौत ने जैसे सब कुछ छीन लिया। आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया और पैसे के अभाव में पढ़ाई भी बंद हो गई। दोनों बडे भाइयों ने थोड़ा बहुत काम करके आय का स्रोत तो बनाया, लेकिन इतने बड़े परिवार के लिए खर्च पर्याप्त नहीं था। जैसे-तैसे कक्षा दस पास कर सुधीर ने खुद कमाई करने का मन बनाया। पान की गुमटी लगाकर व्यवसाय शुरू किया। इसी बीच शादी भी हो गई लेकिन जब लड़की को इनके अपंग होने की बात पता चली तो उसने शादी के बाद साथ आने से इंकार कर दिया। इस बात से सुधीर को काफी सदमा पहुंचा। यहीं से पूरी लगन से पैसे कमाकर आत्मनिर्भर होने का दृढ़ निश्चय किया, लेकिन सुधरने के बजाय घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ती गई। भाइयों ने उन्हें अलग कर दिया। इन तकलीफों एवं समस्याओं के बीच पीसीओ की दुकान खोलकर अपनी आय बढ़ाने की कोशिश किया और इसी बीच टाइपराइटर चलाना भी सीख लिया। इस कार्य में उसे सफलता भी मिली उनके सफलतापूर्वक संचालन के लिए बीएसएनएल ने उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार के लिए जागरूक करने का भी काम सौंपा जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। इतना ही नहीं कुछ लोगों को उन्होंने काफी दिनों तक निश्शुल्क टाइपराइटर चलाना भी सिखाया धीरे-धीरे लगातार आगे बढ़ते गए। देवीपाटन मंदिर से भी जुड़ गए। इसी बीच बैंक से ऋण लेकर एक जनरेटर खरीदकर देवीपाटन बाजार में बिजली की अनुपलब्धता में लोगों को कनेक्शन देकर बिजली आपूर्ति करके नया व्यवसाय शुरू कर दिया। यही नहीं 2013 में समाज के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कर समाज के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर नगर पंचायत चुनाव में अध्यक्ष के पद पर चुनाव भी लड़ा यह अलग बात कि सफलता नहीं मिली। दिन बहुरे तो पुन: उनकी शादी एक स्नातक लडकी से हो गई। अब पति-पत्‍‌नी एकदूसरे के कदम से कदम मिलाकर अपनी गृहस्थी सफलतापूर्वक चला रहे हैं। दिन भर तहसील में और शाम को व्हील चेयर पर बैठकर लोगों से बिजली के व्यवसाय में व्यस्त रहकर अपना जीवन चला रहे सुधीर को कोई चिंता नहीं है, लेकिन उनका यह मेहनत लोगों के लिए एक संदेश से कम नहीं है दृढ़ इच्छाशक्ति के बलबूते कुछ भी हासिल किया जा सकता है।


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