आत्म विश्वास ने बनाया नेशनल खिलाड़ी
बलरामपुर : परिवार की गरीबी व गांव का पिछड़ापन गांव में छुपी प्रतिभा को आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता है
बलरामपुर : परिवार की गरीबी व गांव का पिछड़ापन गांव में छुपी प्रतिभा को आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता है। यह बात वाराणसी जिले के पिछड़े गांव गनेशपुर की रहने वाली काजल पटेल, पूजा कुमारी व भरती कुमारी ने साबित कर दिखाया है। तीनों फुटबाल खिलाडि़यों में से पहली दो खिलाड़ी अंडर 14 व अंतिम ने अंडर 16 की नेशनल बालिका फुटबाल टीम से खेल चुकी हैं। साथ ही तीनों खिलाड़ियों ने इंडिया कैंप भी किया है। तीनों खिलाड़ी सामान्य परिवार से हैं। गांव का पिछड़ापन व पिता की छोटी आय ने इन बालिकाओं को स्कूल से दूर कर दिया। घर की आर्थिक स्थित बहुत अच्छी न होने के चलते मन में खेल की भावना होने के बाद भी यह नन्हें खिलाड़ी उसे साकार रूप न दे सके। इसी बीच इन लड़कियों की मुलाकात राष्ट्रीय फुटबाल खिलाड़ी व रेलवे टीम के प्रशिक्षक रहे भरैब दत्त से हुई और उन्होंने इन बालिकाओं के हौसले व उनके भीतर छुपी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें फुटबाल का प्रशिक्षण देना शुरू किया। शुरूआत में तो इनके रिश्तेदार व गांव के लोग इन बच्चियों के माता पिता से अपनी बच्ची को खेलने की स्वतंत्रता न देने व उन्हें गांव से बाहर न भेजने की बात पर जोर देने लगे। लेकिन इन खिलाडि़यों का आत्म विश्वास व फुटबाल के प्रति उनकी दीवानगी उन्हें इस खेल से अलग न कर सका। इसके चलते खिलाडि़यों की कड़ी मेहनत व भरैब दत्त के सही दिशा निर्देश में इन बालिकाओं को राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बना दिया है। साथ ही मूलभूत सुविधा व राशन कार्ड न होने वाले इनके घरों में आज राशन कार्ड के साथ-साथ पासपोर्ट भी पहुंचा दिया है।
पहले तो हमारे गांव के लोग फुटबाल खेलने का विरोध करते थे। साथ ही हमारे माता पिता को भी इसके लिए प्रेरित करते थे, लेकिन आज समय बदल गया। अब जब हम अपने गांव जाते हैं तो गांव व आसपास के लोग हमसे मिलने आते हैं। हम चाहते हैं कि सभी लोग अपनी लड़कियों को घरों से बाहर निकाले दें। जब उनकी बेटियां देश व समाज में उनका नाम रौशन करेंगी तो उन्हें भी अपनी बेटियों पर गर्व महसूस होगा।
- भारती कुमार
फुटबाल खिलाड़ी
हमारी यह उपलब्धि भरैब दत्त सर की देन है उन्होंने ही हमारे भीतर छुपी प्रतिभा को पहचाना और हमें इस काबिल बनाया कि हम भारतीय टीम का हिस्सा बन सकें।
- काजल पटेल
खिलाड़ी
फुटबाल के क्षेत्र में आयोजकों की बहुत कमी है। जिसके चलते बालिका फुटबाल के प्रतियोगिताएं बहुत कम होती है। यदि क्रिकेट की तर्ज पर ही फुटबाल खेल का आयोजन बड़े स्तर पर हो तो हमारे प्रदेश से भी ऐसे खिलाड़ी निकल कर आगे आ सकते हैं। जो देश व विदेशों में भारत व नाम रौशन कर सकते हैं।
-पूजा कुमारी
खिलाड़ी
लड़कियों को खेलने में सबसे बड़ी परेशानी उन्हें बाहर भेजने के लिए घर वालों को तैयार करना होता है। कई बार लड़की के अच्छा खिलाड़ी होने पर भी अभिभावक उसे बाहर भेजने के लिए तैयार नहीं होते हैं। इसके चलते उसके अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने का मौका नहीं मिलता है। अभिभावकों को लड़के-लड़कियों के भेदभाव को छोड़कर उन्हे आगे बढ़ाना चाहिए।
सरिता मिश्रा
- सीनियर नेशनल फुटबाल खिलाड़ी (वाराणसी टीम प्रशिक्षक)