फारवर्ड-ब्लॉक का जिला मुख्यालय था झलहिया गांव
बलरामपुर : देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए हुए स्वतंत्रता आंदोलन का स्वरूप हिंसक रहा हो या क्रांतिकारी, सभी में यहां के सपूतों ने बढ़चढ़कर भागीदारी निभाई है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाही भी यहां थे और उनके दूसरे संगठन फारवर्ड-ब्लॉक के भरोसेमंद कार्यकर्ता। इसी का परिणाम था कि नेताजी ने जिले के झलहिया ग्राम को फारवर्ड-ब्लॉक का जिला मुख्यालय बनाया था। यहीं से अग्रगामी दल के बहादुर सेनानी अपने भावी कार्यक्रम तय करते और उसे गोपनीय ढंग से अंजाम तक पहुंचाते थे।
शुरूआत स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम आंदोलन सन 1857 से करते हैं। तुलसीपुर की वीरांगना रानी ईश्वरी देवी का नाम उन अमर शहीदों में शुमार है जिन्होंने अपने ढाई साल के बच्चे को साथ लेकर अंग्रेजों से लोहा लिया और अपने पराक्रम से उन्हें पीछे हटने को विवश कर दिया। आजादी के दीवाने की संख्या प्रथम विद्रोह के बाद धीरे-धीरे और बढ़ने लगी। बाद के दिनों में बलरामपुर के तीन सपूत अब्दुल हफीज खां, अब्दुल रहीम खां और अब्दुल करीम खां ने आजाद हिंद फौज में शामिल होकर सराहनीय योगदान दिया। नेताजी के दूसरे संगठन फारवर्ड-ब्लॉक का जिला मुख्यालय जब जिले का झलहिया ग्राम बना तो इस गांव के निवासी जगदंबिका सिंह उर्फ बड़कऊ, हरदेव सिंह उर्फ ननककऊ सिंह व रक्षपाल सिंह अपने दो साथियों राम तेज व जगराम नाई के साथ अपने साहसिक कार्यो से जिला प्रशासन को झकझोर दिया। इतना ही नहीं प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने जब फैजाबाद मंडल के क्रांतिकारी संगठन का कार्य बृजनंदन ब्रह्माचारी को सौंपा तो उन्होंने बलरामपुर को अपने गुप्तकार्य स्थल का केंद्र बनाया। नगर के पूरब टोला मोहल्ले में संगमलाल पांडेय का क्रांतिकारियों के मिलन स्थल था जहां विचार-विमर्श के बाद भावी आंदोलन की रणनीति तय की जाती है। आजादी के इन दीवानों का उल्लेख भगवती प्रसाद सिंह द्वारा लिखित पुस्तक 'राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष और गोंडा जनपद' में भी है।
-बापू के लिए खद्दर से सजाया गया था यूरोपियन क्वार्टर
सन् 1929 में महात्मा गांधी लोगों में जागृति लाने तथा भावी आंदोलनों के लिए देश के दौरे पर थे। उनका दौरा गोंडा में भी लगा था। आजादी के कुछ दीवाने मौलवी अहमद खां के नेतृत्व में उन्हें बलरामपुर लाना चाहते थे। बड़ा सवाल था कि गांधी जी के आंदोलन के लिए धन कहां से एकत्र हो। धन की व्यवस्था न होने से निराश मौलवी अहमद खां व अन्य लोग बधना व चटाई लेकर चौक बाजार से चले तो लोगों ने पूछा तो मौलवी साहब ने कहा कि जब शहर के लोग गांधी जी का स्वागत नहीं कर सकते तो हम कब्रिस्तान में ही उनका स्वागत करेंगे। यह बात बलरामपुर राज परिवार तक पहुंच गई। महाराजा धन देने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने यूरोपियन गेस्ट हाउस (अब माया होटल) में ठहरने का प्रबंध किया। इस क्रम में यूरोपियन गेस्ट हाउस को खद्दर से सजाया गया। गांधी जी आए तो उनका स्वागत कुआनो पुल के पास महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने किया और चार हजार रुपये की थैली भी भेंट की। महिलाओं की सभा में गांधी जी को दो हजार की थैली व आभूषण भेंट किए गए। इसके बाद तो गांधी जी के हर आंदोलन में बलरामपुर की भागीदारी बढ़ गई।