नहीं बन सका उतरौला बस डिपो
उतरौला (बलरामपुर) : चुनावी मौसम में मतदाता मूलभूत सुविधाओं के निदान का मुद्दा रखते है, जनप्रतिनिधि मुद्दों के निदान को कसमें खाकर सत्ता तक पहुंचते है और सदन में पहुंचने के बाद जनहित के मुद्दे गौण हो जाते हैं। बीते कई दशक से उतरौला में बस डिपो बनाने का मुद्दा लोकसभा तथा विधानसभा के चुनावों में उठता रहा है, लेकिन बस डिपो की मांग आज तक चल रही है।
वर्ष 1875 में स्थापित तहसील उतरौला ने बलरामपुर-तुलसीपुर तथा मनकापुर जैसे तहसीलों को अपने से अलग कर दिया था। तीन तहसीलों को अलग करने के बाद क्षेत्र में व्यापक विकास की उम्मीद लगाई गई थीं, लेकिन स्थितियां इससे उलट हो गई। तुलसीपुर तथा मनकापुर को रेलवे की सुविधा मिल गई। बलरामपुर को डिपो तथा रेलवे स्टेशन मिल गया लेकिन उतरौला तहसील को नियमित बस सेवा तक नहीं मिल पाई। क्षेत्र को अधिकतर आबादी बाहरी मुल्कों तथा अन्य महानगरों में जीविकोपार्जन के लिए आती जाती रहती है। बदहाल परिवहन सेवाओं के चलते शाम छह बजे के बाद गोंडा, मनकापुर, फैजाबाद, सादुल्लाहनगर, डुमरियागंज, धुरावा आदि मार्गो पर निगम की बसें नहीं है। डग्गामार वाहन इन मार्गो सूर्योदय से सूर्यास्त तक गरजमंदों के जरूरत के मुताबिक अपनी सेवाएं देते हैं। परिवहन सेवाओं की अव्यवस्था से नौकरी, पेशा, व्यापारी, छात्र तथा आम यात्री बेहाल है। तीन दशक पहले डिपो बनाने का काम शुरू किया गया था। वर्कशाप आदि की तैयारी की गई, लेकिन डिपो कहीं और बन गया। तहसील मुख्यालय को तीस हजार से अधिक की आबादी परिवहन की अव्यवस्था से आहत है। अम्मार रिजवी बताते हैं कि छात्रों को शिक्षा के लिए परिवहन निगम की सुविधा चाहिए। व्यापारी अरविंद कसौंधन का कहना है कि मंडियों से माल उठाने के लिए निगम की बसें कारगार साबित हो सकती हैं। राजदीप का कहना है कि डिपो बन जाने के बाद कम से कम हर मार्ग को निगम की बसों के आने जाने की सुविधा तो मिल ही जाएगी। हर चुनाव की इस तरह चुनाव में भी बस डिपो बनाने की मांग मतदाताओं की ओर से उठी है और जनहित के लिए कुर्बान होने का दावा करने वाले क्षत्रपों का क्या दृष्टिकोण है यह देखना अभी बाकी है।