अग्निकांडों पर भारी पड़ रही संसाधनों की कमी
उतरौला (बलरामपुर) : तपती धूप, तेज पछुआ हवाओं तथा आग बुझाने की लापरवाही फूस के मकानों, खलिहानों तथा खेत में खड़ी फसलों के लिए घातक साबित हो रही हैं। अग्निशमन दस्ते की स्थायी तैनाती के लिए जद्दोजहद कर रहे तहसील क्षेत्र के 363 आबाद मजरे के कच्चे मकान हजारों हेक्टेयर की फसल कुछ ही पलों में तबाह हो जाती है।
केवल अप्रैल महीने में ही दो सौ से अधिक मकान तथा सैकड़ों बीघा खेत आग की भेंट चढ़ चुके हैं। गांवों में आग बुझाने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है क्योंकि तालाब, पोखरे सूख चुके हैं, कुओं का वजूद लुप्तप्राय है और हैंडपंप भयावह आग को शांत कर पाने में असहाय साबित होते हैं। अग्निकांड होने की प्रमुख वजहों में घर से निकली राख को बिना बुझाए खाद गड्ढे पर फेंकना, बीड़ी-सिगरेट की चिंगारी, सूखी पत्तियों अथवा बांस के पेड़ों की आपसी टकराहट तथा खेत में खड़ी डांठ (डंठल) को नष्ट करने के लिए जलाना शामिल है। गांवों में बच्चों द्वारा माचिस का दुरुपयोग, तालाब कि किनारे शिकार भूनना भी अग्निकांड को बड़ी घटना बन जाती है। जिसमें कई घरों की गृहस्थियां खाक हो जाती हैं। साथ ही फसल, मवेशी तथा जनहानि भी होती है। तेज हवा में ओवरहेड विद्युत तारों में विद्युत प्रवाह के चलते रगड़ के चलते भी आग लगने की घटनाएं होती है। अग्निकांड की घटना के बाद फायर बिग्रेड को जनपद मुख्यालय से बुलाना पड़ता है। कभी-कभी एक साथ कई क्षेत्रों में अग्निकांड की घटना होने पर मनकापुर से दमकल मंगानी पड़ती है। चालीस किलोमीटर की दुर्गम दूरी तय कर घटना स्थल पर दमकल पहुंचने से पहले गृहस्थी तथा धन जन निगलकर आग बुझ चुकी होती है। क्षेत्रीय लोगों ने स्थानीय स्तर पर दमकल की तैनाती की लिए कई बार उच्च अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों से फरियाद की लेकिन भीषण अग्निकांड के समय बीत जाने के बाद अगस्त महीने में अस्थाई दमकल उपलब्ध कराने की परंपरा कई वर्षो से चल रही है। सीओ सुनील सिंह का कहना है कि समरसेविल पंप वाले वाहन की मांग की गई है।