नारियल का अंग-अंग लाभदायक है मानव के लिए
सिकन्दरपुर (बलिया): नारियल प्रकृति प्रदत्त एक ऐसा फल है जिसका आध्यात्मिक महत्व तो है ही इसने मानव जीवन के हर क्षेत्र में अपनी उपयोगिता प्रमाणित की है। इसका मीठा गुदा जल तत्व से भरा होने के कारण जहां स्वास्थ्य वर्द्धक है वहीं इसके अन्दर पाया जाने वाला तरल पदार्थ प्यास भी बुझाने के काम आता है। यह शीतल तरल पदार्थ अनेक खनिज लवणों, प्रोटीन युक्त होने के कारण गर्मी में शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है। साथ ही शरीर के क्षतिग्रस्त उत्तकों की मरम्मत कर अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है। श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक डा.रवीन्द्र प्रताप राघव बताते हैं कि नारियल का वानस्पतिक नाम कोकोस न्यूसीफेरा है तथा यह तन्तुमय आष्ठिल फल है। नारियल ही एक ऐसा फल है जिसका हर अंग मानव के लिए उपयोगी है। इसका कठोर आवरण खुरदरे रेशों से ढका होता है जिसे बोलचाल में जटा कहा जाता है। इस जटा से प्लास्टिक के आविष्कार के पूर्व बने बोरा, चट्टी, रस्सी, पायदान तथा रेड कार्पेट, कमरों में कालीन की जगह बिछाने का काम देते है। नारियल की बदौलत ही बंगाल में अनेक जूट मिल स्थापित थे जहां लाखों लोगों को जीविका प्राप्त थी। यही जटा पहले सोफा में भी भरा जाता था तथा गृहिणियां इसे बर्तन धोने में उपयोग करती थीं। नारियल का कच्चा गूदा तो खाया ही जाता है, सूख जाने पर सूखे मेवे के रूप में प्रयुक्त होता है जिसे गरी कहते हैं। गरी का बुरादा मिठाइयों पर छिड़कने पर उसे स्वादिष्ट बनाता है तथा इस बुरादे की बर्फी भी बनाई जाती है। यही नहीं गरी के टुकडे़ हलवा, खीर आदि में भी डाले जाते हैं। इसी गरी के पेराई से निकलने वाले तेल को नारियल या गरी का तेल कहा जाता है। यह तेल बालों को सुगन्धित, लम्बा तथा उसकी जड़ों को मजबूत करता है। यह देवी मंदिरों में प्रसाद के रूप में चढ़ाने के साथ ही यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रयुक्त होता है। कच्चे नारियल को 'डाभ' कहा जाता है जिसके अन्दर मौजूद तरल पदार्थ को पीने से पेट ठंडा व दिलो दिमाग तरोताजा रहता है। यह तरल पदार्थ चेहरे के दाग को मिटाने में भी काम करता है। गर्मी के दिनों में इस 'डाभ' की बिक्री बढ़ जाती है। कहना न होगा नारियल मनुष्य के लिए प्रकृति का वरदान है।
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