बैंकों में छुट्टी, एटीएम में भी लटके ताले
बलिया : नोटबंदी के बाद से अब तक इन 25 दिनों में आरबीआई से अरबों रुपये जिले में आए फिर भी स्थिति भयाव
बलिया : नोटबंदी के बाद से अब तक इन 25 दिनों में आरबीआई से अरबों रुपये जिले में आए फिर भी स्थिति भयावह ही बनी हुई है। रविवार को बैंकों में छुट्टी के बाद तो स्थिति और भी नारकीय रही। छुट्टी की वजह से नगर क्षेत्र में एकाध एटीएम ही खुले थे जहां सैकड़ों लोग पूरे दिन जूझते रहे। एटीएम के बंद रहने से लोग पूरे दिन इधर से उधर भागते रहे पर कहीं भी उनको राहत नहीं मिली। दूसरी ओर स्थिति कहे तो बैंकों से ग्राहकों को रोजाना करोड़ों रुपये दिए जा रहे फिर भी कहीं से भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही है। बैंकों की मनमानी की वजह से किसी एक ग्राहक का भी पेट नहीं भर रहा जिससे यहां तबाही की स्थिति हो गई है। इसमें बड़ी बात तो है कि जब रोजाना बैंकों में इतनी रकम आ रही तो आखिर ये जा कहां रही है। नोटबंदी के 25 दिनों के बाद भी न तो बैंकों पर लाइन कम हो सकी है और न एटीएम पर घट रही है। नोटबंदी के बाद से जिले के अधिसंख्य लोगों की स्थिति बदहाल हो गई है। लोग रुपये-रुपये के लिए मोहताज हो गए हैं तो पूरा दिन बैंकों में ही बीत जा रहा है। जबकि इसी में जो साधन संपन्न व्यक्ति हैं उनके पास तक रुपये पहुंच जा रहे हैं। इस तरह की स्थिति में लोगों के बीच आक्रोश भी बढ़ते जा रहा है। बैंकों में चल रही मनमानी से लोग और भी आजिज हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बेहद खराब है। लोगों को अपने की रुपये को पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
बाजार-व्यापार भी रहा सूना
बैंकों में छुट्टी के बाद बाजार-व्यापार में भी सियापा पसरा रहा। दुकानों तो खुली रही पर नोट के अभाव में जरूरतमंद ग्राहक ही पहुंचे। जिनके यहां मांगलिक आयोजन आदि है उनको छोड़ कर बाजार में सामान्य ग्राहकों की संख्या काफी कम रही। द कानों पर ग्राहकों की स्थिति को देख कारोबारी भी आराम की स्थिति में ही रहे। रविवार की वजह से अधिसंख्य प्रतिष्ठान बंद ही रहे जिससे बाजार में काफी कम रौनक रही। नोटबंदी के बाद उत्पन्न हुई स्थिति में सबसे अधिक परेशानी छोटे-बड़े कारोबारियों को ही हो रही है।
कैसे हो कैशलेस मिल ही नहीं रही स्वाइप मशीन
नोटबंदी के बाद एक तरफ सरकार देश में कैशलेस व्यवस्था को लाने पर जोर दे रही जबकि दूसरी ओर यहां छोटे-बड़े कारोबारियों को बैंकों से स्वाइप मशीन ही नहीं मिल रही है। नोटबंदी के बाद बहुत से कारोबारी मुख्यधारा से जुड़ने के लिए बैंकों में आवेदन किए पर मशीन कुछ को ही मिल सकी। जिले में एकाध बैंकों को छोड़ कर किसी के पास मशीन की उपलब्धता नहीं है। इसमें निजी बैंकों के पास ही मशीनों की उपलब्धता अधिक है जबकि सरकारी वाले आवेदन के पखवारे भर बाद ही इसे दे पा रहे हैं। ऐसी स्थिति व्यापारी से लेकर आम आदमी तक सभी परेशान हैं।
उधारी पर हो रही खेती-किसानी की व्यवस्था
नोटबंदी के बाद खेती के सीजन में रुपये के बिना किसानों की हो रही दुर्गति को देखते हुए सरकार ने सहकारी समितियों पर पुराने नोटों के चलन के आदेश तो दे दिए थे लेकिन धरातल पर यह कहीं चल नहीं रहे हैं। ऐसे में इससे सबसे अधिक परेशान किसान ही हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी का प्रवाह एक तो ऐसे ही ना के बराबर है तो उसमें खेती करना किसानों के लिए टेढ़ी खीर ही साबित हो रही है। आज रबी फसलों में एक बीघा खेत की बोवाई आदि का पूरा खर्च लगभग तीन हजार रुपये के करीब लग रहा है जबकि गांवों में बैंक वाले पांच सौ व एक हजार रुपये से अधिक किसी को दे ही नहीं रहे हैं। ऐसे में किसान उधारी आदि मांग कर ही किसी तरह से खेतों की बोवाई का काम कर रहे हैं। इसमें कितने ही किसानों की तो खेती भी पिछड़ गई है तो कितनों के खेत परती पड़े हैं। सरकारें भाषण में तो किसानों की हितैषी बनती फिर रही लेकिन धरातल पर उनको कोई पूछने वाला तक नहीं है।
सराफा कारोबारियों की भी स्थिति खराब
नोटबंदी के शुरूआती दिनों में लोगों द्वारा जमकर की गई गहनों की खरीदारी के बाद इनकम टैक्स के चाप चढ़ने से यहां सराफा कारोबारी अभी सहमे हुए ही हैं। कारोबारी दुकानों को तो खोलते हैं लेकिन खरीद-बिक्री का काम बड़ा ही सावधान होकर कर रहे हैं। इसमें जो लोग नए नोट या फिर चेक दे रहे दुकानदार उन्हीं को सामान बेच रहे हैं। इधर जिले में कई दुकानों पर इनकम टैक्स की हुई छापेमारी के बाद इनकी स्थिति और भी खराब हो गई है। दुकानों में गहने होने के बाद भी कारोबारी बिना पहचान वाले लोगों को देने से मना कर दे रहे हैं। इसे शादी-विवाह वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।