कभी गाड़ी पर नाव और कभी नाव पर गाड़ी
दोकटी (बलिया) : बहुत पुरानी कहावत है कि कभी गाड़ी पर नाव और कभी नाव पर गाड़ी। कुछ इसी तरह का माजरा लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रहा है। जब जनता को जनप्रतिनिधियों से काम होता है को उनसेमिलने के लिए उन के समर्थकों से अनेक बार आग्रह करने के बाद भी कभी-कभी ऐसा होता कि उनका मिलना मुमकिन नहीं होता।
आज ठीक उसके उलट देखने को मिल रहा है। जनता जिन दुरूह पगडंडियों से होकर अपने खेतों में जाती है आज वहां राजनीतिक दलों के नेता व समर्थक लक्जरी वाहनों के साथ जाकर दुआ सलाम कर वोट की मांग कर रहे हैं।
एक तरफ जहां चुनाव प्रचार चरम पर चल रहा है। वहीं दूसरी तरफ किसानों के रबी फसलों का कटाई व मड़ाई का कार्य जोरों पर चल रहा है। किसान खेत खलिहानों में फसलों की कटाई व मड़ाई में व्यस्त हैं। राजनीतिक दल भी अपने चुनावी अभियान के तहत जब गांवों में वोट मांगने के लिए जाते हैं, पता चलता है कि घरों पर महिलाएं ही मौजूद हैं और पुरुष खेत व खलिहानों में गए है तो नेताजी व उनके समर्थक उन लक्जरी वाहनों पर सवार होकर उन्हीं दुरूह राहों के सहारे किसानों के खेतों व खलिहानों तक पहुंच जाते हैं और अपनी फरियाद करते हैं।
किसान भी जो कोई जाता है उसे आश्वासन देते है किंतु उनके जाने के बाद अपनी व्यथा भी शुरू कर देते हैं।