पापा परदेश में हैं..
बहराइच : उत्साह न कोई तैयारी। दिनचर्या वह भी रोज की तरह। बाढ़ व कटान से विस्थापित परिवार मन मसोस कर
बहराइच : उत्साह न कोई तैयारी। दिनचर्या वह भी रोज की तरह। बाढ़ व कटान से विस्थापित परिवार मन मसोस कर अपने बच्चों को यूं ही सांत्वना देते रहे। आम दिनों की भांति प्रकाश पर्व भी विस्थापित परिवारों में कोई उत्साह नजर नहीं आया। हरसंभव मदद का दावा करने वाले राजनेता हो या स्वयंसेवी संगठन का कार्यकर्ता। इन परिवारों के बीच खुशियां साझा करने नहीं पहुंच सका।
हम बात करते हैं बाढ़ व कटान से विस्थापित उन परिवारों की जो कई वर्षो पूर्व अपना घर बार नदी की लहरों में गंवा चुके हैं। कमाई का कोई जरिया भी नहीं बचा है। इनके लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ चुनौती सरीखा है। वैसे तो विस्थापित परिवारों की संख्या अधिक है। राजस्व आंकड़ों की माने तो 1627 परिवार तटबंध व आसपास के सड़क के पटरियों पर सरपत की बनी झोपड़ी में बसर कर रहे हैं। दीपावली जैसे पर्व पर जहां चारों तरफ जहां धूम थी। पटाखों की आवाज से वातावरण गूंज रहा था वहीं विस्थापित परिवारों में रोज की तरह दिनचर्या रही। इन परिवारों के बच्चे पटाखों व फुलझड़ियों के लिए मचलते रहे तो परिजन उन्हें सांत्वना दे रहे थे। चचेरवा निवासी सोहनलाल का घर मकान वर्ष 2006 में घाघरा की लहरों में समा गया था। तब से यह डीहा गांव के पास तटबंध पर गुजारा कर रहे हैं। गुरुवार को यह अपने कार्य में व्यस्त दिखे। पास में खड़े उनके बच्चों ने पटाखे लाने की जिद की तो सांत्वना देकर अपने काम में फिर लग गए। सोहनलाल ने बताया कि पैसे हैं नहीं। कहां से पटाखे का इंतजाम हो। यहां पर खड़ी राममिलन की करीब 12 वर्षीय पुत्री से जब त्योहार पर बात की गई तो उसने मनमसोस कर बताया कि पापा परदेश में हैं कहकर चुप हो गई। यहां से आगे बढ़े तो बेंहटा स्थित तटबंध पर नौबस्ता निवासी नान्हू, लल्ला, विशाल सहित अन्य की झोपड़ी हैं। इनका घर कई वर्ष लहरों में विलीन हो गया था। इन परिवारों के बच्चें एक साथ खेल रहे थे। इनसे जब पूछा गया तो बताया कि पापा पटाखे नहीं लाए । फिलहाल प्रकाश का पर्व पर भी बाढ़ व कटान से विस्थापित परिवारों में कोई चहल पहल नहीं नजर आई। लोगों के सुख दुख में मदद का दावा करने वाले राजनेता हों या स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ता इस पर्व पर त्योहार में खुशिया साझा करने नहीं पहुंचे।