'माटी' के लिए छोड़ दी मातृभूमि
बहराइच 'पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल' इस कहावत को झूठा साबित कर दिया है कृषि स्नातक क
बहराइच
'पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल' इस कहावत को झूठा साबित कर दिया है कृषि स्नातक किसान अनिरुद्ध यादव ने। देवरिया जिले के मूल निवासी अनिरुद्ध ने खेती के प्राकृतिक व आधुनिक तरीके का मिश्रण कर खुद की ¨जदगी तो संवारी ही, साथ ही यह साबित किया कि खेती घाटे का सौदा नहीं। गोमूत्र व गोबर के घोल से बीज शोधन कर रसानिक उर्वरकों, कीटनाशकों के खतरे को भी कम किया।
माटी की सेवा के लिए अनिरुद्ध ने सरकारी नौकरी की लालसा और पैतृक गांव त्याग दिया। बहराइच जिले में जमीन सस्ती होने के चलते यहां आ गए। किसी तरह धन की व्यवस्था की और तेजवापुर ब्लॉक के अलादादपुर गांव में चार बीघे जमीन लेकर बस गए। इसी जमीन से औद्यानिक खेती शुरू की। कठिन मेहनत और दृढ़ संकल्प के चलते आज वह 30 बीघे जमीन के मालिक हैं। यही नहीं उनके इस हुनर से गांव के कई परिवारों को रोजगार भी मिल रहा है। अनिरुद्ध ने परंपरागत खेती के बजाए औद्यानिक खेती शुरू की। चंद महीनों में ही उनके सितारे चमकने लगे और आज वह अच्छी ¨जदगी गुजार रहे हैं। खेती के रोल मॉडल बन चुके अनिरुद्ध स्वयं ब्लॉक, मंडल व प्रदेश स्तर की कृषक गोष्ठियों में किसानों को प्रेरित करने के लिए बुलाए जाते हैं।
क्या है सफल खेती का राज
अदरक, लहसुन, मिर्चा, धनिया, गन्ना, चना, हल्दी, पपीता, केला, बेल, आलू आदि की खेती करने वाले अनिरुद्ध बताते हैं कि फसलों की बुवाई क्रमवार करने से कम भूमि में अधिक पैदावार होती है। इस विधि का उपयोग हम भी करते हैं। वे बताते हैं कि रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। वे अपने खेतों में सिर्फ गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं। गौमूत्र, नीम पत्ती, धतूरा के बीज, कटहल की पत्ती, मदार आदि से कीटनाशक बनाते हैं। गौमूत्र व गोबर के घोल से बीज संशोधित कर बुवाई करते हैं, जिससे जमाव व अनकुरण शीघ्र होता है और लागत भी कम लगती है।