साहब! हर रोज अतिक्रमण देख गुजरते हैं
बहराइच: साहब! यह शब्द जिले में हुक्कामों के लिए बोला जाता है। अतिक्रमण से कराह रहे फुटपाथों को साहब
बहराइच: साहब! यह शब्द जिले में हुक्कामों के लिए बोला जाता है। अतिक्रमण से कराह रहे फुटपाथों को साहब गाड़ी में ही बैठ शीशे के भीतर से देखते हैं और जानते हैं उम्रदराज, बच्चों और महिलाओं के चलने वाला फुटपाथ खत्म हो रहा है। अतिक्रमण बढ़ रहा है, लेकिन निकल जाते हैं।
प्रशासनिक मशीनरी जैसे-जैसे शून्यता की ओर बढ़ रही है। हर जवाबदेही को टरकाऊ रूप देने की प्रशासन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कभी राजनीतिक सम्मेलनों का हवाला, कभी तीज और पर्व का बहाना। बावजूद इसके, कभी तो अतिक्रमण हटाने के लिए आगे आना ही होगा।
आंखों में कैद होता अतिक्रमण का नजारा
पुलिस लाइन से जेल रोड। इस मार्ग पर खाकी की दौड़-धूप शहर के अन्यमार्गों से अधिक है। पुलिस लाइन तिराहे से जैसे ही जेलरोड वाले मार्ग पर आगे बढ़ेंगे, फुटपाथ अतिक्रमण से दबे मिलेंगे। ठेलों का रेला और पान की गुमटियों की फुटपाथ जैसे जागीर बन गई है। पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारी इस मार्ग से गुजरते जरूर है, लेकिन फुटपाथ खाली कराने को लेकर फिक्रमंद नहीं दिखते। जेल से चर्च मार्ग पर भी ऐसा ही हाल है। चार पहिया वाहन वाले तो निकल जाते है, लेकिन पैदल राहगीर किस पर चलें? यह सवाल इधर से गुजरने वाले हर किसी के जेहन में कौंधता है? पर जवाब देने वाले मौन हैं।