..जो रोशनी थी वो भी सलामत न रही
बहराइच : नवाबगंज कस्बे का अति प्राचीन विद्यालय अतीत की यादों को संजोए अपनी दुर्दशा पर आसूं बहा रहा ह
बहराइच : नवाबगंज कस्बे का अति प्राचीन विद्यालय अतीत की यादों को संजोए अपनी दुर्दशा पर आसूं बहा रहा है। जनप्रतिनिधियों के वादे कोरे रहे और विद्यालय बदहाल होता चला गया। विद्यालय की दशा देख दुश्यंत कुमार का यह शेर काफी समीचीन नजर आ रहा है- कैसी मशाले ले के तीरगी में आप, जो रोशनी थी वो भी सलामत न रही।
कस्बे का प्राचीन विद्यालय भवन नवाब मुहम्मद अली खां ने 1890 में बनवाया था। उन्हें अंग्रेजों से वफादारी के एवज में परगना चर्दा के 23 गांवों की तालुकेदारी मिली थी। विद्यायल भवन की वास्तुकला लोगों को अब भी आकर्षित करती है। विद्यालय की बनावट देखकर लगती है कि यह विद्यालय काफी भव्य एवं सुंदर वास्तुकारी का नमूना है। स्थानीय बुजुर्ग अली हसन, हाजी अली अहमद, मास्टर नईम अख्तर आदि बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन काल व नवाबी प्रथा के दौरान प्रमुखता से उर्दू भाषा की पढ़ाई प जोर दिया जाता था। दूर-दूर के छात्र इस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने आते थे। विद्यालय में छात्रावास बनाया गया था, जो वर्तमान में जर्जर अवस्था में होने के कारण निष्प्रयोज्य है।
अत्यधिक जर्जर होने के कारण 2004 में नवीन विद्यालय भवन का निर्माण कर उसमें कक्षाएं संचालित कर दी गईं। इस विद्यालय के संचालक अहमद उल्ला खां ने बताया कि यहां जूनियर हाईस्कूल का पहला सत्र 1896 में शुरू हुआ था, जिसका अभिलेख आज भी विद्यालय में सुरक्षित है। ग्रामीणों ने यहां आए ऊर्जा राज्यमंत्री यासर शाह से विद्यालय के मरम्मत कराने के लिए प्रयास करने की मांग की। मंत्री ने ग्रामीणों को विद्यालय की मरम्मत का आश्वासन दिया है, तब से स्थानीय ग्रामीण इस ऐतिहासिक विद्यालय भवन के जीर्णोद्धार का इंतजार कर रहे हैं।