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कैसे 'जगमग' होगी विस्थापितों की 'कुटिया'

महसी(बहराइच) : 'घर के ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है, बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है' जनक

By Edited By: Published: Thu, 23 Oct 2014 12:15 AM (IST)Updated: Thu, 23 Oct 2014 12:15 AM (IST)
कैसे 'जगमग' होगी विस्थापितों की 'कुटिया'

महसी(बहराइच) : 'घर के ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है, बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है' जनकवि अदम गोंडवी की यह पंक्तियां बाढ़ व विस्थापित परिवारों पर सटीक बैठती है। बाढ़ व कटान की त्रासदी का संत्रास झेलकर तटबंधों पर शरण लिए हजारों परिवारों के पास समस्याओं की लंबी फेहरिस्त है। बेघर परिवारों की दिनचर्या ही बदरंग हो गई है। इनके लिए त्योहार कोई मायने नहीं रखते। चारों ओर प्रकाश पर्व के उल्लास की धूम है पर मुफलिसी के दौर से गुजर रहे विस्थापित परिवारों से दीपावली जैसे इस बडे त्योहार में उत्साह नजर नहीं आता। आपदा के वक्त जो लोग मरहम लगाने आते हैं वह त्योहार के वक्त नहीं दिखे। चाहे वह 'खद्दरधारी' राजनेता हों या स्वयंसेवी संस्थाएं और प्रशासनिक अफसर। कोई भी इन पीड़ितों की कुटिया पर झांकने नहीं आया। तोहफों की तो बात ही दूर।

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प्रकाश पर्व का उत्साह घाघरा के कछार में बसे उन गांवों से गायब है जहां पिछले डेढ़ दशक से लहरों ने जमकर कहर बरपा रखा है। तटबंध पर ट्रेन के डिब्बों के मानिंद एक के बाद एक दूर तक बनी झोपड़पट्टी त्रासदी की गवाह हैं। घर खेती बाग-बगीचा सब कुछ लहरों की भेंट चढ़ चुका है। बाढ़ व कटान से विस्थापित हजारों परिवारों के हर सुबह एक नई दुश्वारी लेकर आता है। परिवारों के रोजी रोटी का जरिया छिन चुका है। अब इन्हें बच्चों के 'गोलाथी' का प्रबंध करने में ही लाले पड़े हैं। इनके लिए त्योहार बेमानी है। तटबंध पर गुजर-बसर करने वाले चचेरवा के रामतेज, तीरथराम कहते हैं कि दीपावली में कोई झांकने तक नहीं आया है। कोयली का कहना है कि सब कुछ भगवान के भरोसे है।

इनसेट : इस बार ये भी नहीं आए!

महसी : लहरों में घर बार गंवा चुके विस्थापित परिवारों का दर्द किसी से छिपा नहीं है। तत्कालीन बसपा शासन में सूबे के राज्यमंत्री व वर्तमान में भाजपा से श्रावस्ती के सांसद दद्न मिश्र ने वर्ष 2010 में प्रकाश पर्व पर पीड़ितों के दर्द महसूस किया था। उनके इस कार्य में उनका साथ समाजसेवी स्व. जगतजीत सिंह ने भी बखूबी निभाया था। श्री मिश्र ने मोटरबोट से घाघरा नदी पार कर ठड़बेहना, लोनियनपुरवा, मंहगूपुरवा, गुलाबपुरवा गांव पहुंच बाढ़ व कटान पीड़ित परिवारों में मोमबत्ती, मिठाइयां व बच्चों को गोले पटाखे बांट पर्व की खुशियों में साझा किया था, पर इस बार वे भी नहीं आए।


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