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सरकारी तंत्र ने 18 माह से रोक रखा है गांवों का विकास

बागपत : सरकारी तंत्र ने विकास कार्यों व गरीबी उन्मूलन की योजनाओं को सीज कर 245 ग्राम पंचायतों की 12

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Jul 2017 11:09 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jul 2017 11:09 PM (IST)
सरकारी तंत्र ने 18 माह से रोक रखा है गांवों का विकास
सरकारी तंत्र ने 18 माह से रोक रखा है गांवों का विकास

बागपत : सरकारी तंत्र ने विकास कार्यों व गरीबी उन्मूलन की योजनाओं को सीज कर 245 ग्राम पंचायतों की 12 लाख की आबादी को अहसास करा दिया कि सीएम योगी की सरकार चाहे जितना प्रयास करे, लेकिन उनकी सेहत पर असर नहीं पड़ता। यही कारण है कि 50 करोड़ का बजट बैंकों में पड़ा होने के बावजूद गांव बदहाल हैं। कहीं कागजी लिखा-पढ़ी को पंचायत सचिव नहीं आते, तो कहीं विकास का इस्टीमेट बनाने को इंजीनियर ढूंढे नहीं मिल रहे। अफसरान हकीकत से आंख मूंदे हैं, क्योंकि जैसा चल रहा है वैसा चलने दो का ढर्रा वह छोड़ना नहीं चाहते।

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राज्य वित्त आयोग और 14वें वित्त आयोग से काफी पैसा पंचायतों को सीधे मिलता है। मकसद गांवों की चुनी हुई सरकार जरूरत के अनुसार स्वयं विकास कराएं, लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं हो रहा, क्योंकि साल 2014-2015 तथा 2016-2017 में राज्य वित्त तथा 14वें वित्त आयोग से मिला बजट आज तक खर्च नहीं हुआ। दरअसल, पिछला साल ग्राम पंचायतों की पंचवर्षीय कार्ययोजना बनाने और प्लान प्लस साफ्टवेयर पर अपलोड कराने और डीपीआरओ तथा प्रधानों के बीच छिड़ी जंग में गुजर गया। मार्च 2016 में सरकार बदली और योगी आदित्यनाथ ने सीएम की शपथ ली तो आम से लेकर खास तक को लगा कि अब विकास की गाड़ी रफ्तार पकडे़गी, लेकिन साढ़े तीन माह बाद भी उम्मीद पूरी नहीं हुई।

पंचायत विभाग का रिकार्ड देखने से साफ हुआ कि बागपत की 245 में से 234 ग्राम पंचायतों में विकास के बड़े काम शुरू ही नहीं हुए। सिसाना, ग्वालीखेड़ा, सूरजपुर महनवा, क्यामपुर, धनौरा सिल्वरनगर,फतेहपुर पुट्ठी, गाधी, बली, सूप, अहमदशाहपुर पदड़ा, गठीना समेत महज 11 गांवों में ही दो लाख से ज्यादा लागत के कुल 21 विकास कार्यों का निर्माण चल रहा है। ऐसा नहीं कि प्रधान विकास कार्य कराना ही नहीं चाहते, बल्कि हकीकत यह है कि बार-बार तबादलों और रोस्टर की आड़ में पंचायत सचिवों को ताश के पत्तों की मा¨नद फेटने में कसर नहीं छोड़ी। बाकी कसर जूनियर इंजीनियरों के नहीं मिलने ने पूरी कर दी।

आलम यह है कि कहीं पंचायत सचिव के आने का इंतजार है तो कहीं प्रधानजी इस्टीमेट बनवाने को जूनियर इंजीनियर को ढूंढने में लगे हैं। परिणाम है गांवों में चौतरफा बदहाली। सीसी रोड, नाली-खडंजा, पुलिया, शमशान घाट तथा कब्रिस्तानों की चाहरदीवारी का निर्माण, शौचालय निर्माण, साफ-सफाई, पेयजल आपूर्ति और तालाब खुदाई, स्वरोजगार को स्वयं सहायता समूह गठन, विधवा, वृद्धा तथा दिव्यांग पेंशन जैसे गरीबी उन्मूलन के काम चौपट हैं।

दो हजार हैंडपंप ठप

शासन ने इंडिया मार्का हैंडपंपों को ठीक और रीबोर कराने का जिम्मा ग्राम पंचायतों को सौंपा है। फिलहाल बागपत की ग्राम पंचायतों में दो हजार से ज्यादा इंडिया मार्का हैंडपंप ठप हैं, क्योंकि कभी पंचायत सचिव नहीं मिलता तो कभी जल निगम के इंजीनियर टरकाने में कसर नहीं छोड़ते।

गांवों के ओडीएफ में रोडा

सीएम योगी ने पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन को अंजाम तक पहुंचाने को दिसंबर तक बागपत की सभी ग्राम पंचायतों को खुले में शौच मुक्त करने का लक्ष्य और बजट दिया हुआ है, ताकि सभी 54 हजार परिवारों में शौचालय बनवा सकें। साढ़े बारह हजार शौचालयों को पैसा पंचायतों को दिया हुआ है, लेकिन जून में प्रदेश के सर्वाधिक खराब प्रगति के दस जिलों में बागपत शामिल है।

सचिव को ढूंढ रहे लोग

पंचायत सचिवों के गांवों में नहीं आने से विकास ठप है और आम जन परेशान, क्योंकि जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र, राशन कार्ड या अन्य काम नहीं हो पा रहे हैं। फिलहाल स्कूलों में प्रवेश चल रहे हैं, लेकिन बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र बनवाने को अभिभावकों को कभी ब्लाक पर तो कभी विकास भवन में भटकते देखा जा सकता है।

कहां कितना पैसा

बागपत के गांवों में 12.6 करोड़, छपरौली के गांवों में 9.36 करोड़, खेकड़ा के गांवों का 6.13 करोड़, पिलाना के गांवों का 6.42 करोड़, बिनौली के गांवों का 8.30 करोड़ तथा बड़ौत के गांवों के 4.44 करोड़ रुपये बैंक खातों में पड़े हैं। स्वच्छ भारत मिशन के भी आठ-दस करोड़ रुपये पंचायतों के खातों में पड़े हैं।

कैसे हो विकास?.. दिन में दो बार तबादला

बागपत: पंचायत राज ग्राम प्रधान संगठन के जिलाध्यक्ष रामपाल धामा ने कहा कि अफसरशाही ने ऐसा उलझा रखा है कि प्रधानों की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें तथा कैसे ग्रामीणों को विकास न होने पर सफाई दें? अफरशाही दिन में दो बार पंचायत सचिवों का तबादला करती है। इससे अच्छा तो प्रधानों से इस्तीफा ही ले लें। महासचिव एवं मालमाजरा गांव के प्रधान ठा. शैलेंद्र ¨सह कहते हैं कि सरकारी तंत्र चाहता ही नहीं है कि गांवों का विकास हो। माल अफसर काटते हैं, लेकिन जांच में प्रधानों को फंसाते हैं।

नैथला के प्रधान दिनेश ¨सह कहते हैं कि छह माह चक्कर लगाने के बाद किसी तरह 40 लाख रुपये के विकास का इस्टीमेट बनावाया पर अब काम कराने का नंबर आया तो जेई बदल गया। दूसरा जेई पहले इस्टीमेट को गलत करार देकर अब नया इस्टीमेट बनाने की बात कहकर काम लटकाना चाहता है। ऐसे तो पांच साल इस्टीमेट बनवाने में ही गुजर जाएंगे। राजपुर खामपुर के प्रधान सतेंद्र ¨सह व खेडा इस्लामपुर के प्रधान राजकुमार कहते हैं कि छह माह से सफाई कर्मी नहीं हैं, पंचायत सचिव के नहीं होने से सीसी रोड, खडंजा, नाली तथा शौचालयों का निर्माण नहीं हो रहा है। तालाबों और नालों की खुदाई नहीं होने से बारिश का पानी घरों में घुसने लगा है। प्रशासन और विकास अफसरों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन परिणाम सिफर है।

चौहल्दा के प्रधान अनुप ¨सह कहते हैं कि विकास कार्यों का इस्टीमेट बनवाने तथा कागजी कार्रवाई कराने को पंचायत सचिव नहीं मिल रहा। रोज दफ्तरों में चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं ग्राम विकास अधिकारी एवं ग्राम पंचायत विकास संघ के जिलाध्यक्ष प्रमोद कुमार का कहना है कि पंचायत सचिवों की कहीं कोई कमी नहीं है। पिछले साल पहले शासन ने बजट खर्च करने पर रोक लगाई फिर कार्ययोजना करने को साफ्टवेयर नहीं बना।

सांसद कर चुके हैं प्रयास

बागपत: गांवों के चौपट विकास को पटरी पर लाने को भाजपा सांसद डा. सत्यपाल ¨सह ने प्रधानों तथा अधिकारियों के साथ गत 29 जून को बैठक की। तय हुआ कि हर गांव में काम शुरू होंगे। इसके बावजूद परिणाम सिफर है। प्रधानों ने तब तमाम दिक्कत सांसद को बताई थी, जिनका अफसरों ने निराकरण का आश्वासन दिया था, लेकिन परिणाम सिफर है।


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