कातिल सड़कें, खतरों के खिलाड़ी और खूनी सफर
बड़ौत: यदि आप हसीन सफर का सपना लेकर घर से निकले हैं तो इसकी गारंटी नहीं कि आप सकुशल लौट भी पाएंगे
बड़ौत:
यदि आप हसीन सफर का सपना लेकर घर से निकले हैं तो इसकी गारंटी नहीं कि आप सकुशल लौट भी पाएंगे या नहीं। आपके पास चौपहिया या दोपहिया वाहन है तो खतरा और भी बढ़ जाता है। जर्जर सड़कों पर मौत की मा¨नद दौड़ते वाहन कब हादसों का शिकार हो जाएं, कहा नहीं जा सकता। आंकड़ों को खंगालने पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सात साल में 835 लोग दुर्घटनाओं के शिकार हुए। वजह रही, सरकारी तंत्र की लापरवाही और लोगों में जागरूकता की कमी। साल-दर-साल मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति विकट हो सकती है।
जिले में दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे समेत दो दर्जन से अधिक मुख्य और संपर्क मार्ग बेहद जर्जर हैं। इन खतरनाक सड़कों पर चलना लोगों की मजबूरी है, लेकिन राहगीर सुरक्षा के बंदोबस्त करके घर से नहीं निकलते हैं। दोपहिया वाहनों पर हेलमेट नहीं लगाते। चौपहिया वाहनों में सीट बेल्ट नहीं बांधने और स्पीड लिमिट होने के बाद भी इनके चालक पालन नहीं करते हैं और तेजी से वाहन दौड़ते हैं। पुलिस महकमे से मिले आंकड़ों को खंगाला तो हर साल हादसों में मौत का दायरा बढ़ता ही नजर आया। साल 2010 में जहां सड़क दुर्घटनाओं में 86 लोगों की मौत हुई तो 2016 में यह आंकड़ा 178 तक पहुंच गया। सबसे अधिक हादसे दिल्ली हाईवे पर हुए हैं, जो कई साल से जर्जर है। 2017 के अभी दो माह ही बीते हैं कि अब तक 27 लोगों की मौत हो चुकी हैं।
आंकड़े साफ बताते हैं कि मौत तेजी से लोगों को निगल रही है और लोग यातायात के नियम तोड़ने में तनिक गुरेज नहीं करते। सरकारी तंत्र भी सड़कों को दुरुस्त कराने को लेकर गंभीर नहीं है।
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बोलते हैं हादसे में मौत के आंकड़े
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वर्ष मौत
2010 86
2011 94
2012 106
2013 114
2014 118
2015 167
2016 178
2017 27 अभी तक।
नोट :- आंकड़े पुलिस विभाग से लिए गए हैं।
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इन्होंने कहा..
पुलिस अपने स्तर पर सड़क हादसों को नियंत्रित करने का प्रयास करती है। इसलिए समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं।
-अजय शंकर राय, एसपी-बागपत