शक्ति रूपेण संस्थिता..
(बागपत) खेकड़ा के बड़ागांव के प्रवेश द्वार पर स्थित प्राचीन सिद्धपीठ मनसा देवी मंदिर श्रद्धा व आस्थ
(बागपत)
खेकड़ा के बड़ागांव के प्रवेश द्वार पर स्थित प्राचीन सिद्धपीठ मनसा देवी मंदिर श्रद्धा व आस्था का प्रतीक है। मान्यता है यहां आने वाले हर व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। देवी मां अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती। नवरात्र में यहां दूर-दराज से आकर लोग पूजा कर मन्नतें मांगते हैं। नवरात्र के अंतिम दिन मां भगवती का रात्रि जागरण होता है।
वटवृक्ष पर बांधा जाता है कलावा
मंदिर कई चमत्कारी घटनाओं का साक्षी रहा है। मान्यता है मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन विशाल वटवृक्ष पर जो भी श्रद्धालु कलावा बांधते हैं उनकी मनोकामना तीन माह में अवश्य पूरी होती है।
ऐसे पहुंचे मंदिर
मंदिर तक आने के लिए दिल्ली व खेकड़ा से बसें मिलती हैं। दिल्ली में कश्मीरी गेट आईएसबीटी से बस से आया जा सकता है बस खेकड़ा उतारती है। यहां से टेंपो से बड़ागांव पहुंचा जा सकता है। ट्रेन से भी खेकड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचा जा सकता है।
इतिहास
बुजुर्गों का कहना है कि मां मनसा देवी मंदिर का नाता त्रेता युग से है। किवदंती है लंकाधिपति रावण हिमालय से प्रतिमा लेकर मेरठ के रास्ते लंका ले जाना चाहता था। देवी की शर्त थी कि यदि उसे कहीं जमीन से स्पर्श किया तो वहीं पर स्थापित हो जाएगी। जैसे ही वह बड़ागांव के जंगल में पहुंचा तो लघुशंका की शिकायत हुई। लघुशंका की वजह से रावण ने मूर्ति वहां गाय चरा रहे ग्वाले को दे दी। ग्वाला, देवी के तेज को सह न सका और उसने मूर्ति को जमीन पर रख दिया। बताते हैं तभी से देवी मूर्ति यहीं पर स्थापित है।
विशेषता
मंदिर की भव्यता देखने लायक है। दर्शन मात्र से ही चमत्कार का एहसास होने लगता है। यहां ¨हदू धर्म के लोगों के अलावा जैन धर्म के लोग भी मत्था टेकने आते हैं। मंदिर के गर्भगृह की वास्तुकला दर्शनीय है। यहां स्थित बरगद का पेड़ काफी पुराना है, जिसमें देवी दर्शन के बाद धागा बांधने से मनोकामना पूरी होती है। मंदिर में जाने के लिए चारों ओर से रास्ता है, श्रद्धालु एक रास्ते से दर्शन कर दूसरे रास्ते से वापस आते हैं।
वास्तुकला
सदियों पुराना मंदिर अपनी भव्यता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। देवी मंदिर के गर्भगृह में ऊपर बनाई गई नक्काशी व कलात्मक आकृति श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाली है। शीशे की कलाकृति तो मनमोहक है।
नवरात्र के दिनों में मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है। दुर्गा जागरण में विशेष व्यवस्था व सजावट की जाती है। दो दिन का मेला भी लगता है, बच्चे व महिलाएं खरीददारी कर मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर मनोकामना करते हैं।''
- राजपाल ¨सह, अध्यक्ष मंदिर कमेटी।
मंदिर में मत्था टेककर जिसने जो भी मांगा, उसकी हर मुराद पूरी हुई। मैंने भी यहां आकर मन्नत मांगी थी तो तीन माह में पूरी हो गई। देवी के चमत्कार से ही मेरी पत्नी को शिक्षिका की नौकरी मिली।''
-प्रदीप त्यागी, श्रद्धालु।