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झूमकर नाचा था आ•ादी का पहला सवेरा

पंकज तोमर, बड़ौत : 'मुल्क आजाद हो गया है। अब हम किसी के गुलाम नहीं। अपने नियम होंगे और अपना संविधान।

By Edited By: Published: Fri, 07 Aug 2015 10:45 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2015 10:45 PM (IST)
झूमकर नाचा था आ•ादी का पहला सवेरा

पंकज तोमर, बड़ौत : 'मुल्क आजाद हो गया है। अब हम किसी के गुलाम नहीं। अपने नियम होंगे और अपना संविधान। 15 अगस्त-1947 की सुबह जब पहली बार ये शब्द सुनाई दिए तो मन मयूर नाच उठा। शंखनाद हुआ और हर घर की दहलीज व मुंडेर दीपों से रोशन हो उठी। देशभक्तों की टोलियां घर से निकल पड़ीं और फिजा में गूंजना शुरू हो गया देशभक्ति का तराना। तैयारी तो दीवाली की चल रही थी, लेकिन अबीर-गुलाल ऐसा उड़ा कि होली के रंग बरस पड़े। सच, कितना सुखद था वो सवेरा। खेल-खलिहान, गांव-शहर सब जस के तस थे लेकिन लगता है ये भी खुद को मुक्त महसूस कर रहे थे। सूरज से स्वाभिमान की लपटें निकल रही थीं तो किरणों को भी मानो आजाद आंगन में छिटकने पर फº था'।

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मैं गुलाम ¨हदुस्तान में जन्मा था, लेकिन आजादी के मायने खूब समझता था। 15 अगस्त 1947 का वह दिन आज भी मुझे याद है। मेरी उम्र 79 साल हो चुकी है। होली व दीपावली का एक साथ त्योहार मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। मेरा बचपन वाजिदपुर गांव की गलियों में गुजरा है। बचपन से ही मुझे बताया जाता था कि अंग्रेजों ने हमारे भारत को गुलाम बना रखा है और कुछ क्रांतिकारी इसे आजाद कराने को प्राणों की बाजी लगा रहे हैं। इस उम्र में मुझे गुलाम शब्द के मायने तक नहीं पता था, तो फिर बचपन गुलामियत का भी क्या एहसास करता। इसका असली ज्ञान मुझे तब हुआ जब देश आजाद होने वाला था। उस वक्त उम्र थी करीब 11 साल और मैं गांव के प्राइमरी स्कूल में कक्षा तीन में पढ़ता था।

एक दिन शोर मच रहा था कि कल 15 अगस्त 1947 है। भारत आजाद हो गया है। पूरे गांव में लोग लालटेन लेकर जुलूस निकालकर जश्न मना रहे थे। आजादी की घोषणा से पहली रात को गांव में हर घर पर दीये जलाए गए। मैं भी जश्न में डूब गया। खुश था कि मेरा भारत आजाद होने वाला है। 15 अगस्त की सुबह जब आजादी की घोषणा हुई तो हर कोई चहक उठा। चारों ओर खुशी का माहौल था। लोग अबीर-गुलाल उड़ रहे थे। नाच रहे थे। गुनगुना रहे थे। मैं भी शामिल हो गया उस होली में। लोगों के बीच मैंने भी महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत ¨सह आदि देशभक्तों के गगनचुंबी नारे लगाए। वो सुबह आज भी याद है कि हर कोई खुशी के मारे रात को भी नहीं सो पा रहा था। मेरे घरवाले भी पूरा रात जागकर जश्न मनाते रहे थे। वो होली-दीपावली उसके बाद फिर कभी एक साथ न आई।


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