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खेती के दम पर चूमा आसमां

बागपत : फसल बर्बादी से दम तोड़ते किसानों से चौतरफा शोर है कि खेती घाटे का सौदा है। लेकिन ऐसा नहीं है।

By Edited By: Published: Sun, 26 Apr 2015 11:33 PM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2015 11:33 PM (IST)
खेती के दम पर चूमा आसमां

बागपत : फसल बर्बादी से दम तोड़ते किसानों से चौतरफा शोर है कि खेती घाटे का सौदा है। लेकिन ऐसा नहीं है। बागपत में अनेक किसान हैं जो खेती के बूते सफलता की कहानी लिखने में पीछे नहीं है। विनोद त्यागी को ही लें तो विकलांगता के बावजूद लीक से हटकर खेती में जहां लाखों में खेल रहा है वहीं दूसरों के लिए मिसाल है।

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पिलाना निवासी 42 वर्षीय विनोद कुमार त्यागी बीकॉम हैं। मगर सन 2000 में कृषि विविधिकरण परियोजना का बोर्ड देख मूड बदला और शार्टहैंड की प्रैक्टिस छोड़ खेती करने लगा। हालांकि औरों ने समझाया कि तुम विकलांग हो सरकारी नौकरी मिल जाएगी। खेती में क्या धरा है? लेकिन वह नहीं माना। पिता की आठ हेक्टेयर जमीन पर खेती करने लगा। शुरू में गेहूं और गन्ना की खेती करता था। फिर सन 2006 में खेती का ट्रेंड बदला। कृषि विभाग में खेती में बदलाव का प्रशिक्षण लिया। प्रमाणित बीज और कृषि की नई तकनीक अपनाई। कुशल प्रबंधन का परिचय दिया और गेहूं तथा गन्ना का कुछ रकबा कम कर अरहर की खेती की तो पहली ही बार यानि सन 2008-2009 में प्रति हेक्टेयर 18.20 कुंतल रिकार्ड उत्पादकता प्राप्त कर कृषि विभाग की प्रतियोगिता में जनपद में प्रथम स्थान पाया। फिर हौसला बढ़ा तो सहारनपुर में प्रशिक्षण ले खेत में मधुमक्खी पालन शुरू कर अतिरिक्त आमदनी पाने लगा। मगर बदलाव की बात यहीं खत्म नहीं होती। फिर सह फसली खेती अपना ली। गन्ना फसल में सह फसली लौकी की खेती कर सन 2012 में कृषि विभाग से सम्मान पाया।

यही नहीं सन 2012 में नई तकनीक अपना कर धान फसल में प्रति हेक्टेयर 106.4 कुंतल उत्पादकता ले ऐसी धूम मचाई कि तत्कालीन डीएम ने उसे किसान सम्मान से नवाजा। खेती ही नहीं 8 बीघा जमीन पर अमरूद का बाग भी है जिसमें लोकॉट, आंवला, करोंदा से अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहा है। पॉपुलर के खेत में सह फसली खेती के रूप में हल्दी की बुआई कर रखी है। जबकि यहां हल्दी की खेती नहीं होती।

गन्ना के खेत में सह फसली लौकी और खीरा उत्पादन प्राप्त कर अतिरिक्त आमदनी पा रहा है। विनोद कुमार त्यागी की मानें तो वह गन्ना और गेहूं की परम्परागत खेती के पीछे नहीं हैं। हरी सब्जियों की खेती भी करता है। प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 2.45 लाख आमदनी पाता है। सह फसली खेती का यह फायदा है कि खीरा-लौकी की आय से गन्ना खेती की पूरी लागत निकल आती है। तभी तो आसपास के किसान भी उसके खेतों को जाकर देखते हैं और फिर खुद वैसी खेती का ही प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं उसके खेती से छह और परिवारों की रोजी रोटी चल रही है।

यही वजह है कि विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने तीन दिसम्बर 2015 को विकलांगता दिवस पर विनोद कुमार त्यागी को सृजनात्मक कार्य पर राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजा। विनोद कुमार त्यागी का कहना है कि मुझे खेती और किसान होने पर फक्र है। किसान फसल चक्र में थोड़ा बदलाव लाये और बैंक-साहूकार से कर्ज लेकर दूसरे काम पर खर्च से बचे तथा कुशल प्रबंधन से खेती करे तो फिर तय मानिए कि खेती सोना उगलेगी।

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इन्होंने कहा..

विनोद कुमार त्यागी प्रगतिशील किसान है। हमेशा वह खेती में कुछ ना कुछ नया करने और नया सीखने के चक्कर में रहता है। कई बार पुरस्कार पा चुका है।

-डा. धुरेंद्र कुमार-उप कृषि निदेशक।


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