'लखटकिया' हुआ लंकापति रावण
विनीत तोमर, बागपत कलयुग की इस महंगाई से त्रेतायुग का रावण भी अछूता नहीं रहा। तीन दशक पहले और आज क
विनीत तोमर, बागपत
कलयुग की इस महंगाई से त्रेतायुग का रावण भी अछूता नहीं रहा। तीन दशक पहले और आज के रावण के पुतलों के दामों में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। लंकापति रावण जहां लखटकिया हो गया, वहीं कुंभकर्ण और मेघनाद भी पीछे नहीं रहे।
एक समय था जब दशहरे का अपना क्रेज हुआ करता था। कई-कई माह पहले रावण दहन के लिए उसके पुतले बनाने की तैयारियां शुरू हो जाती थीं। जैसे-जैसे समय बीता, वैसे-वैसे लोगों में उत्साह भी कम हो रहा है, लेकिन इन सब से परे त्रेतायुग का रावण लगातार महंगाई की तरफ बढ़ रहा है। लगभग तीन दशक पहले जहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले लगभग पांच हजार रुपये में तैयार हो जाते थे, आज उन्हीं पुतलों को तैयार करने में लगभग अस्सी हजार से एक लाख रुपये तक का खर्च आ रहा है। इनको बनाने वाले कारीगर भी मुस्लिम हैं और इनमें अपनी सौहार्द का रंग भरने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
बागपत में जलेगा 70 फिट का रावण
रामलीला कमेटी के मंच संचालक राकेश मोहन गर्ग बताते हैं कि वे 1984 से रामलीला के मंचन कार्य में जुटे हैं। उस दौर में और आज में बहुत महंगाई बढ़ गई है। बांस, कपड़ा और पटाखे-बम आदि के दाम काफी बढ़ गए हैं, जिससे पुतला तैयार करने में काफी खर्च हो जाता है। नगर में इस बार रावण का पुतला लगभग 70 ऊंचा तैयार किया गया है, जबकि कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले की ऊंचाई लगभग पचास फिट है।
खर्च कम और मजदूरी ज्यादा
रावण के पुतले को तैयार करने में जो सामग्री लगती है उसका खर्च जोड़ा जाए तो लगभग दस से बीस हजार रुपये आता है, लेकिन पुतला तैयार करने वालों की मजदूरी कई गुना अधिक होती है। इस बार भी मेरठ के कारीगरों को साठ हजार रुपये का ठेका दिया गया है, जबकि अन्य खर्च इससे अलग है।
बाबा-दादा के जमाने से बना रहे पुतले
नगर के सम्राट पृथ्वीराज कालेज में रावण का पुतला तैयार कर रहे कारीगर असलम, खुर्रम, बिल्लू और जावेद आदि का कहना है कि वह बाबा-दादा के जमाने से इस धंधे में जुटे हैं। बागपत के अलावा इस बार उन्होंने मेरठ और रामपुर में भी रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले तैयार किए हैं।