दुनिया जानेगी बागपत में कितनी होती है मीथेन गैस
बागपत : कुश्ती और निशानेबाजी में दुनिया भर में परचम लहराने के बाद अब बागपत विज्ञान के क्षेत्र में भी अपना झंडा बुलंद करने को तैयार हो रहा है। जिले में कितनी मीथेन गैस निकलती और मौसम का क्या हाल है आदि की जानकारी दुनिया के किसी भी कोने से मिनटों में ली जा सकेगी। यह सब संभव होगा जिले में लगने वाले माइक्रो मैट्रोलॉजिकल इंस्ट्रूमेंट से। वेस्ट यूपी में लगने वाला इस तरह का यह पहला यंत्र होगा।
एसपीसी कालेज में जापानी दल के साथ आए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. एसके ढाका ने 'दैनिक जागरण' को बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय, जापान के नारा और टोक्यो विश्वविद्यालय की टीम मीथेन गैस पर रिसर्च कर रही है। रिसर्च के दौरान सामने आया कि मीथेन गैस उस स्थान पर सबसे ज्यादा होती है, जहां पर धान की फसल बोई जाती है। मीथेन गैस से धरती और आसमान के बीच की लेयर प्रभावित होती है। यह गैस पर्यावरण और व्यक्ति के लिए नुकसानदायक होती है। बागपत में भी धान की फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है। इसीलिए तीनों विश्वविद्यालय की तरफ से बागपत में माइक्रो मैट्रोलॉजिकल इंस्ट्रूमेंट लगाया जाएगा। इंस्ट्रूमेंट को नेट के माध्यम से सेटेलाइट से जोड़ा जाएगा, जिसके बाद दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर गैस की रसायनिक क्रियाओं की जानकारी ली जा सकेगी। धान की फसल से कितनी मीथेन निकल रही है, इसका कहां सदुपयोग किया जा सकता है और जिले का मौसम कैसा है आदि की रिपोर्ट हर दिन तैयार होगी।
इंस्ट्रूमेंट से जुड़ेंगे चार ग्रुप
इंस्ट्रूमेंट लगने के बाद शुरुआती दौर में टोक्यो, नारा और दिल्ली विश्वविद्यालय को जोड़ा जाएगा। स्थानीय स्तर पर एसपीसी कालेज भी इसका पूरा उपयोग करेगा। इसके अलावा बाकी ग्रुप को बाद में जोड़ा जाएगा।
क्या है लगाने की विधि
माइक्रो मैट्रोलॉजिकल इंस्ट्रूमेंट के लिए कम से कम 40 से 50 बीघा भूमि की आवश्यकता होती है। उस भूमि में केवल एक ही तरह की फसल होनी चाहिए। डा. एसके ढाका के मुताबिक, माइक्रो मैटरोलॉजिकल इंस्टूमेंट की कीमत लगभग चार से पांच लाख रुपये होती है। इंस्ट्रूमेंट लगाने के लिए उन्होंने सम्राट पृथ्वीराज कालेज के पास एक भूमि का निरीक्षण भी किया। इंस्ट्रूमेंट लगाने के बाद स्थानीय स्तर पर उसकी पूरी जिम्मेदारी एसपीसी कालेज प्रबंधन की होगी, जो अपने स्तर से भी डाटा कलेक्ट करेगी।